पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१६८

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११० परमार्थसोपान [ Part I Ch. 4 3. THE MYSTICAL CHARACTERISTICS OF A SADGURU. वोह सतगुरु सन्त कहावे, नैनन अलख लखावै ॥ टे ॥ डोलत डिगै न बोलत विसरै, जब उपदेस दृढ़ावै । प्रानपूज्य किरिया तें न्यारा, सहज समाधि सिखावै ॥ १ ॥ द्वार न रुँधै पवन न रोकै, नहिं अनहत अरुझावै । यह मन जाय जहाँ जग जब ही, परमातम दरसावै करम करै निहकरम रहै जो, ऐसी जुगत दिखावै । सदा विलास त्रास नहिं मन में, ॥ २ ॥ भोग में जोग जगावै ॥ ३ ॥ ( Contd. on p. 112 )