पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८१
सच्ची प्रीति.
 


अपनें बाग मै चलकर मच्छियों का तमाछा (तमाशा) देख़ूंगा" दूसरा लड़का गोदमैं बैठकर कहनें लगा.

“लाला जी तुम बोल्ते क्यों नहीं? यहां इकल्लै क्यों बैठे हो? चलो छैल (सैर) करने चलैं" एक लडका हात पकड कर खैंचनें लगा.

‘जानें चुन्नीआल (लाल) कहां हैं? विन्नें (उन्होंने) हमें एक तछवीर (तस्वीर) देनी कही थी लाला जी! तुम उछे (उसे) चोकट मैं लगवा दोगे?” दूसरे लडकेनें कहा.

"छैल (सैर) करनें नहीं चन्ते तो घर ही चलो, अम्मा आज सवेरे सै न जानें क्यों रो रही है और बिन्नों आज कुछ भोजन भी नहीं किया" एक लड़का बोला.

"लाला जी! तुम बोल्ते क्यों नहीं? गुछा (गुस्सा) हो? चलो, घर चलो हम मेरठ छे (सै) खिलौनें लाए हैं छो (सो) तुम्हें दिखावेंगे” दूसल ठोडी पकड कर कहनें लगा.

"तुम तो दंगा करते हो चलो हमारे साथ चलो हम तुमको वरफ़ी मंगादेंगें यहां लालाजी को कुछ काम है” व्रजकिशोरने कहा―

"आं आंं हमतो लालाजी के छंग (संग) छैल का जायंगे बाग मैं मच्छियोंका तमाछा देखेंगे हमको बप्फी (बरफ़ी) नहीं चाहिये हम तुम्हारे छंग नहीं चलते" दोनों लडके मचल गए.

"चलो हम तुम्हैं पीतल की एक, एक ऐसी मछली खरीद देंगे। जो लोहेकी सलाई सिखाते ही तुम्हारे पास दौड आया करेगी” लाला ब्रजकिशोरने कहा.

“हम यों नहीं चल्ते हमतो लालाजीके छंग चलेंगे.”