सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
मन्त्र

कहारों ने पानी भर-भरकर कैलास को नहलाना शुरू किया। पाइप बन्द हो गया था। कहारों की संख्या अधिक न थी। इसलिये मेहमानों ने अहाते के बाहर के कुएँ से पानी भर-भर कहारों को दिया। मृणालिनी कलसा लिये पानी ला रही थी। बूढ़ा भगत खड़ा मुसकिरा-मुसकिरा कर मंत्र पढ़ रहा था, मानो विजय उसके सामने खड़ी है। जब एक बार मंत्र समाप्त हो जाता, तब वह एक जड़ी कैलास को सुंँघा देता। इस तरह न जाने कितने घड़े कैलास के सिर पर डाले गये और न जाने कितनी बार भगत ने मंत्र फूंँका। आखिर जब उषा ने अपनी लाल-लाल आँखें खोली, तो कैलास की लाल-लाल आँखें भी खुल गई ! एक क्षण में उसने अँगड़ाई ली और पानी पीने को माँगा। डाक्टर चड्ढा ने दौड़कर नारायणी को गले लगा लिया, नारायणी दौड़कर भगत के पैरों पर गिर पड़ी और मृणालिनी कैलास के सामने आँखों में आँसू भरे पूछने लगी--अब कैसी तबीयत है ?

एक क्षण में चारों तरफ खबर फैल गई। मित्रगण मुबारकबाद देने आने लगे। डाक्टर साहब बड़े श्रद्धा-भाव‌ से हर एक के सामने भगत का यश गाते फिरते थे। सभी लोग भगत के दर्शनों के लिये उत्सुक हो उठे ; मगर अन्दर जाकर देखा, तो भगत का कहीं पता न था। नौकरों ने

९०