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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/१३७

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फ़ातिहा


बाक़ी थीं। मैंने बलपूर्वक अपना दाहिना हाथ छुड़ाने का प्रयत्न किया और एक ही झटके में मेरा हाथ छूट गया। मैंने अपनी पूरी ताक़त से तूरया का छुरावाला हाथ पकड़ लिया। न-मालूम क्यों तूरया ने कुछ भी विरोध न किया। वह मेरे हाथ को देखती हुई मेरी छाती से उतर आई। उसकी आँखें पथराई हुई थीं, और वह एकटक मेरे हाथ की ओर देख रही थी।

मैंने हँसकर कहा--तूरया, अब तो पासा पलट गया। अब तेरे मरने की पारी है। तेरे बाप को मारा और अब तुझे भी मारता हूँ।

तूरया अब भी एकटक मेरे हाथ की ओर देख रही थी। उसने कुछ भी उत्तर न दिया।

मैंने उसे झँझोड़ते हुए कहा--बोलती क्यों नहीं ? अब तो तेरी जान मेरी मुट्ठी में है।

तूरया का मोह टूटा। उसने बड़े गम्भीर और दृढ़ कण्ठ से कहा--तू मेरा भाई है। तूने अपने बाप को मारा है आज !

तूरया की बात सुनकर मुझे उस अवसर भी हँसी आ गई।

मैंने हँसते हुए कहा--अफ्रीदी मक्कार भी होते हैं, यह आज ही मुझे मालूम हुआ।

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