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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/२६

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कप्तान साहब


अपने एक मातहत सिपाही को कन्धे पर लेकर निकल आया। ऐसा जान पड़ता है उसे अपने प्राणों का मोह ही नहीं, मानो वह काल को खोजता फिरता है।

लेकिन नित्य रात्रि के समय जब जगतसिंह को अवकाश मिलता है, वह अपनी छोलदारी में अकेले बैठकर‌ घरवालों की याद कर लिया करता है--दो-चार आँसू की बूँदें अवश्य गिरा देता है। वह प्रतिमास अपने वेतन का बड़ा भाग घर भेज देता है, और ऐसा कोई सप्ताह नहीं जाता कि वह माता को पत्र न लिखता हो। सबसे बड़ी चिन्ता उसे अपने पिता की है, जो आज उसी के दुष्कर्मों के कारण कारावास की यातना झेल रहे हैं। हाय ! वह कौन दिन होगा कि वह उनके चरणों पर सिर रखकर अपना अपराध क्षमा करायेगा और वह उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देंगे।

सवा चार वर्ष बीत गये। सन्ध्या का समय है। नैनी जेल के द्वार पर भीड़ लगी हुई है। कितने ही कैदियों की मीयाद पूरी हो गई है। उन्हें लिवा जाने के लिए उनके घरवाले आये हुए हैं ! किन्तु बूढ़ा भक्तसिंह अपनी अँधेरी

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