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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/५०

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स्तीफ़ा


ज़रा भी संदेह नहीं था, लेकिन बैठे-बिठाये डंडे खाना भी तो कोई बुद्धिमानी नहीं है। कुत्ते को आप डंडे से मारिये, ठुकराइये, जो चाहे कीजिए मगर उसी समय तक, जब तक वह गुर्राता नहीं। एक बार गुर्राकर दौड़ पड़े, तो फिर देखें आपकी हिम्मत कहाँ जाती है ? यही हाल उस वक्त साहब बहादुर का था। जब तक यकीन था कि फ़तहचंद घुड़की-धुरकी, हंटर-ठोकर सब कुछ खामोशी से सह लेगा, तब तक आप शेर थे; अब वह त्योरियाँ बदले, डंडा सँभाले, बिल्ली की तरह घात लगाये खड़ा है। ज़बान से कोई कड़ा शब्द निकला और उसने डंडा चलाया। वह अधिक-से-अधिक उसे बरखास्त कर सकते हैं। अगर मारते हैं, तो मार खाने का भी डर। उस पर फौज़दारी में मुक़दमा दायर हो जाने का अंदेशा--माना कि वह अपने प्रभाव और ताक़त से अंत में फ़तहचंद को जेल में डलवा देंगे ; परन्तु परेशानी और बदनामी से किसी तरह न बच सकते थे। एक बुद्धिमान्, और दूरन्देश आदमी की तरह उन्होंने यह कहा--ओहो, हम समझ गया, आप हमसे नाराज़ हैं। हमने क्या आपको कुछ कहा है, आप क्यों हमसे नाराज़ हैं ?

फ़तहचंद ने तनकर कहा--तुमने अभी आध घंटा

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