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पृष्ठ:पाँच फूल.djvu/६४

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ज़िहाद

इस पर चारों सवार चिल्ला उठे--नहीं, नहीं, हम तुम्हें न जाने देंगे, यह आखिरी मौका है।

इतना कहते ही पहले सवार ने बन्दूक छतिया ली और नली धर्मदास की छाती की ओर करके बोला--बस बोलो, क्या मंजूर है ?

धर्मदास सिर से पैर तक कॉपकर बोला--अगर मैं इस्लाम कबूल कर लूँ, तो मेरे साथियों को तो कोई तकलीफ़ न दी जायगी ?

दूसरा--हाँ, अगर तुम जमानत करो कि वे भी इस्लाम कबूल कर लेंगे।

पहला--हम इस शर्त को नहीं मानते। तुम्हारे साथियों से हम खुद निपट लेंगे। तुम अपनी कहो, क्या चाहते हो ? हाँ या नहीं ?

धर्मदास ने जहर का घूँट पीकर कहा--मैं खुदापर ईमान लाता हूँ।

पाँचों ने एक स्वर से कहा--अलहम्द व लिल्लाह ! और बारी-बारी से धर्मदास को गले लगाया।

श्यामा हृदय को दोनों हाथों से थामे यह दृश्य देख रही थी। वह मन में पछता रही थी कि मैंने क्यों इन्हें

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