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पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२९

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रिशवत ] और गिड़गिड़ा के अपना सच्चा हाल कहा और छोड़ देने के लिये बिनती की। हे पाठकगण! जब एक तुच्छ कहार उनसे उन्च करे तो उनकी क्रोधाग्नि के भड़कने का क्या ठिकाना था! बस किसी ने खीचा,चोटया पकड़ी, किसी ने हाथ पांव पकड़े और घसीटते हए चौक की तरफ ले चले, फिर नहीं मालूम कि वह क्यों कर छूटा। शोक का विषय है कि इन गरीबों को क्यों बिना अपराध ऐसी दुर्दशा के साथ पकड़ते हैं और उनकी इच्छा के विरुद्ध उनसे काम लेते हैं। गुलाम बनाने और इसमें क्या भेद है ? गुलाम अपनी इच्छा के बिना निरपराध बरसों परबश रहकर सेवा और टहल किया करते हैं और वेगारी लोग ठीक उन्हीं के सदृश घंटों और दिनों,बरंच कभी २ महीनों पराए बंधन में रहते हैं। इस बेगार का भयंकर दुःख अढ़तियों, व्यापारियों, गाड़ी वालों, दजियों, राजों, कहारों आदि से पूछा चाहिए कि वे इसके नाम से कैसा थर २ कांपते हैं ? हाल में जो काबुल की मुहीम हुई थी उसके लिए सब जिलों के कमसरियट अफिसरों ने हाकिमाने सिविल से कहार इत्यादि सप्लाई करने की दर्खास्त की थी, पर लखनऊ और बरेली के सिविल हाकिमों ने,जो इस वेगार को भयंकर बुराइयों के जानकार थे, साफ जवाब लिख दिया था । सव है, जो उचित मजदूरी देना और किसी की इच्छा के विरुद्ध काम न लेना हो तो हर प्रकार के काम करनेवाले आप से आप कमसरियट के ठीकेदारों की भांति सार में एक पर एक जाके गिरें। हिंदुस्तान कंगाल देश हो रहा है, यहां मजदूरों को काम कराने वाला मिलता कहाँ है ? इंट्रैस पास किए हुए बाबू लोग पंखाकुली की नौकरी करते हैं,महाजनो के अंग्रेजी पढ़े हुए लड़के तीन आने गेज की कांस्टिीवली करते हैं, फिर क्या मजदूर और कहार, यदि उनसे पशु का सा बर्ताव न किया जाय ता, काम काम प्रसन्न मन से न करेंगे? खं० १, सं० ३ ( १५ मई, मन् १८८३ ई. ।। रिशवत __ क्या कोई ऐमा भी विचारशील पुरुष होगा जो रिशवत को बुरा न समझे ? एक ने तो सैकड़ों कष्ट उठा के, मर खप के धन उपार्जन किया है दूसरा उसे सहज में लिा लेता है, यह महा मनर्थ नहीं तो और क्या है ? हमारी समझ में तो जैसे चोरी करना, डाका डालना और जुवा खेलना है वैसा ही एक यह भी है । कदाचित् कोई कहे कि चोर डाक और जुवारी जिसका स्वत्वहरण करते हैं उसका कोई काम नहीं करते, तो हम पूछते हैं