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पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३०७

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सहबास बिल अवश्य पास होगा ] २८५ सिद्धांत को रोक रक्खा हो। फिर क्योंकर मान लें कि ( Conscnt Bill ) न पास होगा। हमने माना कि इसके द्वारा हमारे गर्भाधान संस्कार (जो हमारे परम मान- नीय वेदों के अनुसार सबसे पहिला संस्कार है ) पर हस्तक्षेप होता है और किसी के धर्म पर हस्तक्षेप होना महारानी विक्टोरिया की प्रतिज्ञा के विरुद्ध है पर इससे क्या होना है, गोबध भी तो हमारे धर्म के महा २ विरुद्ध है, पर क्या वह लाख हाय २ करने भी रुक गया ? और भाई, वह बिल तो हमारे ही चिरसिंचित पाप वृक्ष की बतिया है, फिर क्यों न पकेगी? अपूर्णयौवना स्त्री के साथ पुरुष का संपर्क वेद शास्त्र पुराण तो क्या आह्ला तक में अनुमोदित नहीं है । बाल्य विवाह के लतियों ने श्री काशी- नाथ भट्टाचार्य कृत शीघ्रबोध के 'अष्टवर्षा भवेद्गौरी' इत्यादि दो श्लोकों का आश्रय ले रखा है, पर उनके किसी अक्षर में उक्त अवस्था के विवाह की आज्ञा कैसी ध्वनि भी नहीं पाई जाती। यदि कन्यादान शब्द से दश वर्ष की ही का अर्थ लीजिए ( यद्यपि युक्ति और प्रमाणों से यह भी दूर है, क्योकि स्त्री चाहे जितनी बड़ी हो माता पिता की कन्या ही है ) तो भी उसका पतिगृह गमन सात वर्ष, पाँच वर्ष वा न्यूनातिन्यून तीन वर्ष के पूर्व न शास्त्र रीति से कर्तव्य है न लोक रीति से। इस प्रकार तेरह वर्ष से पहिले पति सहवास का उसे अवसर ही न मिलना चाहिए। पर जो लोग धर्म ग्रंथों का तिरस्कार एवं लोक लज्जा को अस्वीकार करके जगदंबा शिवप्रिया गोरी अथवा श्री बलदेव दाऊ की माता रोहिणी अथवा विश्वकन्या के पति अथवा उपपति बन के कामांधता के वश पशुत्व का व्यवहार कर उठाते हैं या उसमें सहायता देते हैं उन्हें सरकार की कौन कहे, परमेश्वर भी लोक परलोक के काम का नही रखता और इसी विवार से सैकड़ों मस्तिष्कमान देशभक्त लोग बरसों से चिल्लाते २ थक गए कि अपना भला चाहो तो बाल विवाह की रोति उठाओ, दूध के बच्चो का बलवीर्य मट्टो मे न मिलाओ पर किसी के कान मे चौवटी न रेंगी। रेंगे कैसे, जिस देश की दुर्दशा अभी पराकाष्ठा को नहीं पहुँची वहां अपने हितैषियों की बात कब सुनी जाती है। लातों के देवता कही बातों से माने हैं ? वहीं जब मिस्टर मालाबारी ने विलायत तक धूम मचाई और एतद्विषयक कानून बनने की नौवत आई तब कान खड़े हुए हैं कि यदि उपर्युक्त बिल पास हो गया तो हमारे चरऊ व्यवहार भी दूसरों के हाथ जा पहेंगे और जिन स्त्रियों को परदादारी को भारतवासी सदा से प्राणों से अधिक रक्षणीय समझते आए हैं, 'धन दै के जिय राखिए जिय दै रखिए लाज' की कहावत प्रसिद्ध है, रामायण और महाभारत ऐसे प्रसिद्ध धर्म ग्रंथों में राक्षस कुल और कौरव वंश के सर्वनाश का कारण सूर्पनखा की नाक का काटना, सीताजी का हर जाना और द्रौपदी जी का केशाकर्षण मात्र लिखा है, इस महा अवनति की शताब्दी में भी जितने लोग फांसी चढ़ाए जाते हैं उनमें से अधिकों के अपराध का मूल पता लगा के देखिए तो स्त्रियों की अप्रतिष्ठा ही पाई जायगी। उस परदादारी की जड़ में मानों दिन रात कुठार रक्खी रहेंगी। जहां किसी द्वेषी अथवा दुराचारी ने किसी रीति से लोकल गवर्नमेंट के कानों तक मूठ सच यह बात पहुँचा दी कि अमुक के यहाँ बारह वर्ष से