एक सलाह ] कहने की नहीं है कर उठाने की हैं। जितना जो कुछ जिस दृढ़ता के साथ कर उठाइए उत्तना ही उत्तम फल पाइएगा और मरने पर भी दूसरों के लिए उदाहरण स्वरूप सुयश छोड़ जाइएगा। नहीं तो जैसे दूसरे हजारों लोग हजारों तरह को झायझाय करते रहते है वैसे ही आप भी धूम मचाते और अमूल्य मानव जन्म को निष्फल गंवाते रहिए । न कुछ होगा न हुवावैगा। आपको धूममंदिर अर्थात् धुवां के धौरहर की भांति कुछ काल तक कोई रूप दिखा के अदृष्ट हो जायगी । बस । खं० ८, सं० ६ ( जनवरी ह. सं. ८) एक सलाह हमारे मान्यवर, मित्र, 'पीयूषप्रवाह' संपादक, साहित्याचार्य पंडित अम्बिकादत व्यास महोदय पूछते हैं कि हिंदीभाषा में "में से के' आदि विभक्ति चिह्न शब्दों के साथ मिला के लिखने चाहिए अथवा अलग। हमारी समझ में अलग ही अलग लिखना ठीक है, क्योंकि एक तो यह व्यासजी ही के कथानुसार 'स्वतंत्र विभक्ति नामक अव्यय है' तथा इनकी उत्पत्ति भिन्न शब्दों ही से है, जैसे-मध्यम, मज्झम्, मांझ, मधि, माहि, महि, में इत्यादि, दूसरे अंगरेजी, फारसी, अरबी आदि जितनी भाषा हिंदुस्तान में प्रचलित हैं उनमें प्रायः सभी के मध्य विभत्ति सूचक शब्द प्रथक रहते हैं और भाग्य की बात न्यारी है नहीं तो हिंदी किसी बात में किसी से कम नहीं है। इससे उसके अधिकार की समता दिखलाने के लिए यह लिखना अच्छा है कि संस्कृत में ऐसा नहीं होता, तो उसकी बराबरी करने का किसी भाषा को अधिकार नहीं है, फिर हिंदी ही उसका मुंह चिढ़ा के बेअदबी क्यों करे ? निदान हमें व्यासजो की इस बात में कोई आपत्ति नहीं है। इधर अपने भाषाविज्ञ मित्रों से एक सम्मति हमें भी लेनी हैं, अर्थात् हमारी देवनागरी में यह गुण सबसे श्रेष्ठ है कि चाहे जिस भाषा का जो शन्द हो इसमें शुद्धर लिखा पढ़ा जा सकता है। अरबी के ऐन+का+खे + आदि थोड़े से अक्षर यद्यपि अ क ख आदि से अलग नहीं हैं, न हिंदी में यों ही साधारण रीति से लिखे जाने पर कोई भ्रम उत्पन्न कर सकते हैं, पर यतः उनका उच्चारण अपनी भाषा में कुछ विलक्षणता रखता है । अस्मात हमारे यहाँ भी उस विलक्षणता की कसर निकाल डालने के लिए अक्षरों के नीचे बिंदु लगाने की रीति रख ली गई है। किंतु अभी अंगरेजी वालो वो V के शुद्ध उच्चारणार्थ कोई चिह्न नहीं नियत किया गया। यह क्यों ? वाइसराय और विक्टर आदि शम यद्यपि हम लोग यवर्गी व अथवा पवर्गी ब से लिख २२