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पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१६८

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ओर झुक रहे हैं, और अपने ग्रहण किये हुए माग पर किस दृढ़ता, वीरता और अकृत्रिमता से जा रहे हैं कि थोड़े से विरोधियों की गाली धमकी तो क्या, बरंच लाठी तक खाके हतोत्साह नहीं होते, और स्त्री-पुत्र, धन-जन क्या, बरंच आत्म- विसर्जन तक का उदाहरण बनने को प्रस्तुत हैं। क्या तुम्हें भी उसी पथ का अवलंबन करना मंगलदायक न होगा ? यदि बहकानेवाले रोचक और भयानक बातों से लाख बार करोड़ प्रकार समझावें तो भी ध्यान न देना चाहिए । इस बात को यथार्थ समझना चाहिए कि पंच ही का अनुकरण परम कर्तव्य है। क्योंकि पंच और परमेश्वर का बड़ा गहिरा सम्बन्ध है। बस इसी मुख्य बात पर अचल विश्वास रखके पंच के अनुकूल मार्ग पर चले जाइये तो दो ही चार मास में देख लीजियेगा कि बड़े २ लोग आपके साथ बड़े स्नेह से सहानुभूति करने लगेंगे, और बड़े २ विरोधी साम, दाम, दंड, भेद से भी आपका कुछ न कर सकेंगे। क्योंकि सब से बड़े परमेश्वर हैं, और उन्होंने अपनी बड़ाई के बड़े २ अधिकार पंच महोदय को दे रक्खे हैं। अतः उनके आश्रित, उनके हितैषी, उनके कृपापात्र का कभी कहीं किसी के द्वारा वास्तविक अनिष्ट नहीं हो सकता। इससे चाहिए कि इसी क्षण भगवान् पंचवक्त का स्मरण करके पंच परमेश्वर के हो रहिए तो सदा सर्वदा पंचपांडव की भांति निश्चिंत रहिएगा।