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पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२१८

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(२०७)

खुलि खेलति जोवन की मतवारी।
गात ही गात अदा ही अदा
कढै़ बात ही बात सुधा सुखकारी।
रंग रचै रस राग अलापि
नचै परताप गरे भुज डारी ।
ताछिन छावै अजीब मजा
बजनी घुघुरू रजनी उजियारी ॥३॥
(देह धरे को यहै फल भाई)
नैनन में बसै सांवरो रूप
रहै मुख नाम सदा सुखदाई ।
त्यों श्रुति में ब्रज केलिकथा
परिपूरण प्रेम प्रताप बड़ाई ।
कोऊ कछू कहै होय कहूँ कछु
पै जिय में परवाहि न लाई ।
नेह निभै नंदनन्दन सों नर-
देह धरे को यहै फल भाई ॥४॥
(धुरवान की धावन सावन में)
सिर चोटी गंधावती फूलन सों
मेहंदी रचि हाथन पावन में।
परताप त्यों चूनरी सूही सजी
मन मोहती हावन भावन में।
निस द्यौस बितावती पीतम के संग