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पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/२२

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बाइबिल, कुरान बना के मर नहीं गया, न पागल हो गया है कि अब पुस्तक-रचना न कर सके। यदि एक ही मत से सबका उद्धार समझता हो तो अन्य मतावलंबियों के ग्रंथ मनुष्य और सारे चिह्न नाश कर देने में उसे किसका क्या डर है?

ॱॱॱॱॱॱ"यदि बेद, बाइबिल और कुरानादि की एक प्रति अग्नि तथा जल में डाल दी जाय तो जलने अथवा गलने से कोई न बचेगी। फिर एकमतवाला किस शेखी पर अपने को अच्छा और दूसरे को बुरा समझता है।ॱॱॱॱॱॱ"

एवं, 'धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां' के वे मानने वाले थे।

इस प्रसंग में यह विचार करना है कि उनके समय में स्वामी दयानंद ने आर्यसमाज नामक जो नई धार्मिक संस्था खड़ी की थी और पौराणिक काल से परम्परागत चले आये मूर्तिपूजा आदि धार्मिक विधानों का खंडन किया था उनकी ओर पंडित प्रतापनारायण जी की कैसी धारणा थी। बात यह है कि आर्य-समाज ने लोगों की विचार-गति को पलटने के उद्देश्य से जो क्रांति मचाई थी उससे उस समय के अधिकांश लोग हिल गये थे और ऐसे झुँझला से गये थे जैसे कि सोते से जगाये हुए आदमी की दशा होती है।

यह देख कर आश्चर्य होता है कि प्रतापनारायण जी आर्य-समाज के वास्तविक महत्त्व को खूब समझ गये थे और आज-कल हम लोग जिस श्रद्धापूर्ण दृष्टि से उसके कार्य को देखते हैं उसी से उन्होंने इतने समय पूर्व देख लिया था। वे कहते हैं:---