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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१३५

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उत्तरी ध्रुव की यात्रा

पिछली दोनों टुकड़ियों ने बार्टलेट वाली टुकड़ी को जा पकड़ा, जाड़ा के बाद ५ मार्च को सूर्य के पहले पहल दर्शन हुए। ११ मार्च को फिर कूच हुआ। वहाँ से सिर्फ १६ आदमी, १२ गाड़ियाँ और १०० कुत्ते पीरी ने साथ रक्खे। बाकी के कुछ वहीं रहे, कुछ लौटा दिये गये। दो तीन गोरे भी आगे न बढ़ सके। एक का पैर सूज गया। एक रास्ता ही भूल गया। इससे वे पीछे पड़े रह गये। मारटिन ओर वाटलेट ने बहुत दूर पीरी का साथ दिया। परन्तु खाने पीने का सामान कम रह जाने से मारटिन को भी पीछे ही पड़ा रह जाना पड़ा। रहे बार्टलेट, सो उनसे पीरी ने कहा, आप क्यों उत्तरी ध्रुव तक जाने का कष्ट उठायेंगे। मैं ही अमेरिका की तरफ से वहाँ तक जाने का बीड़ा उठा आया हूँ। सो अब मुझे ही जान दीजिए।

कमांडर पीरी घड़ी मुस्तेदी और बहादुरी से आगे बढ़ने लगे। किसी दिन वे २० मील चलते थे, किसी दिन २५ मील। मुसीबतों का तो कुछ ठिकाना ही न था। मारे जाड़ों के कर्बस्तिानी यस्किमो लोगों तक के नाकोंदम हो गया। अंँगुलियाँ सूज गई। चेहरों की बुरी दशा हो गई। पीरी के क्लेशों को तो कुछ पूछिये ही नहीं। जहाँ ये लोग विश्राम के लिए ठहरते थे, वहीं पर कभी कभी बर्फ फटकर खुला समुद्र निकल आता था और ये लोग डूबने से बाल-बाल बच जाते थे। चलते चलते कमांडर पीरी ८८ अक्षांश तक