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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/२५

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शिक्षा

तरह का। जो उसके मन में आता है वही उसका कानून है। उसीके अनुसार वह बच्चों का शासन करती है---उसीके अनुसार वह उन पर हुकूमत करती है। इससे बहुत बड़ी हानि होती है। परन्तु बच्चों की समझ जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे उनके मन की धृत्ति मनुष्य-जाति के स्वभाव-सिद्ध नैतिक भावों की तरफ अधिक अधिक झुकती जाती है। इससे छोटी मोटी विपरीत बातों का असर बच्चों पर कम पड़ता है और जितना बिगड़ते हुए वे मालूम होते हैं उतना नहीं बिगड़ते। यदि बच्चों में यह वृति स्वभाव-सिद्ध न होती तो माँ के ऐसे अशास्त्रीय और अनुचित शिक्षण के कारण वे बरबाद होने से न बचते। माँ का ऐसा अन्याय पूर्ण कानून उनको संसार में किसी काम का न रखता।

[३]

अच्छा अब बच्चों की बुद्धि विषयक शिक्षा का विचार कीजिए। क्या इस शिक्षा के सम्बन्ध में भी गड़बड़ नहीं है? क्या इसका भी प्रबन्ध वैसा ही ख़राब नहीं है? मान लीजिए कि बुद्धि-विषयक सब बातें यथा नियम होती हैं। मान लीजिए कि बच्चों की बुद्धि का विकास भी नियमानुसार ही होता है। अतएव मानना पड़ेगा कि बिना इन नियमों का ज्ञान हुए बच्चों की शिक्षा अच्छी तरह नहीं हो सकती। जिस तरीके