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पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/३३

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शिक्षा

सिद्धान्त कैसे अच्छी तरह समझ सकेगा? शिक्षा का जो तरीक़ा आज कल जारी है, वह लड़कों को ज़रा भी इस लायक़ नहीं होने देता कि वे खुद भी कुछ सोच विचार कर सकें और अपनी निज की खोज से अपने आप के शिक्षक हो सके। यह तरीक़ा---दूसरों के ख़यालात को लड़कों के मग्ज़ में भरना---सिखला कर उन्हें बिलकुल ही आलसी, निकम्मा और परमुखापेक्षी बना देता है। बहुत बचपन में विद्याभ्यास के वज़नी बोझ का दिमाग पर दबाव पड़ने से लड़कों की मानसिक शक्तियाँ चूर हो जाती हैं। इन सब कारणों से बहुत ही कम लड़के पूरे विद्वान और योग्य निकलते हैं। परीक्षायें ख़तम होते ही किताबें उठाकर ताक़ पर रख दी जाती हैं; फिर, लड़के भूल कर भी कभी उनकी तरफ़, नहीं देखते। सीखी हुई बातों में---सम्पादन किये हुए ज्ञान में---व्यवस्था न होने, अर्थात् यथा नियम और यथाक्रम शिक्षा न मिलने के कारण, शिक्षित विषयों का बहुत सा हिस्सा जल्द भूल जाता है। जो कुछ रह जाता है वह भी न रहने के बराबर है। उसमें भी कुछ तत्व नहीं रहता। क्योंकि लड़कों को यही नहीं मालूम रहता कि मदरसे में सीखी हुई विद्या से व्यवहार में काम किस तरह लेना चाहिए। यह उन्हें सिखलाया ही नहीं जाता कि काम-काज में विद्या का कैसे उपयोग करना चाहिए। विद्या को किस तरह तरक्की देना चाहिए। किसी चीज़ का