सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७
शिक्षा

सन्तोष हो सकता है? कितना समाधान हो सकता है?

इससे यह बात अच्छी तरह ध्यान में आ सकती है कि सांसारिक कारोबार से सम्बन्ध रखने वाले इस तीसरे भाग, अर्थात् बाल बच्चों के पालन-पोषण और उनकी शिक्षा की उचित व्यवस्था करने के लिए जीवन शास्त्र के ज्ञान की बहुत बड़ी जरूरत है, आदमी की जिन्दगी से सम्बन्ध रखने वाले नियमों का जानना बहुत आवश्यक है। बच्चों के यथोचित पालन-पोषण और शिक्षण के लिए शरीर शास्त्र की मोटी मोटी बातों और मानस शास्त्र के मूल तत्वों का थोड़ा बहुत ज्ञान होना ही चाहिए। बिना उसके काम नहीं चल सकता। इस में सन्देह नहीं कि बहुत आदमी इस बात को सुन कर हँस पड़ेगे। माँ-बाप से इन गहन शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने की आशा रखना उनकी दृष्टि में बेहूदापन मालूम होगा। यदि हम यह कहते कि जितने माँ-बाप हैं सब को इन शास्त्रों का पूरा पूरा ज्ञान होना चाहिए तो यह बात ज़रूर हँसने ही लायक थी, तो हमारा यह कहना जरूर उपहास्य था, तो हमारी यह तजबीज़ जरूर बेहूदी थी। पर बात ऐसी नहीं। हम यह नहीं कहते। यदि माँ-बाप को इन शास्त्रों की सिर्फ मुख्य मुख्य बातें और उनको अच्छी तरह समझा सकने के लिए थोड़े से उदाहरण मालूम हो जायँ तो हम इतना ही ज्ञान काफी समझते हैं। इतने ही से बाल बच्चों