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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१६५

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बुलबुल से भी अधिक स्वतन्त्रता-प्रेमी है। वे सदैव छुटकारे का अवसर खोज लिया करते है। देखा न, वाया जब होता ह, चले जाते है। कब तक आवेगे तुम जानते हो? नहीं भला मैं क्या जानूं । पर, तुम्हारे भाई को मैन कभी नही देखा । इसी से नो कहती हूं नये । मैं जिसका परडकर रखना चाहती हूँ, वे ही लाग तो भागते है। जाने कहाँ ससार-भर का काम उन्ही के सिर पर आ पड़ा है । मरा भाई ? -आह, क्तिनी चौडी छाती वाला युवक था । अकले चारचार घोडो को वीसी कोस सवारी म ले जाता । आठ-दस सिपाही कुछ न कर सक्ते । वह शेर-सा उनमें से तडपकर निकल जाता । उसके सिखाय घाडे सीढियो पर चढ जाते । घोडे उससे बाते करते, वह उनके मरम को जानता था। तो क्या अब नही है ? नहीं है । मै रोकती थी, वावा न न माना । एक लडाई म वह मारा गया । अकेले वीस सिपाहियो को उसने उलझा लिया, और सब निकल जाये । तो क्या मुझे आश्रय देन वाले डाकू है ? तुम देखते नही, मै जानवरा का पालती हूँ, और मर वावा उन्ह मले म ले जाकर बेचते है । -गाला का स्वर तीव्र और सन्देहजनक था। और तुम्हारी माँ ओह ! वह बडी लम्बी कहानी है, उस न पूछो । --कहकर गाला उठ गई । एक बार अपने कुरते के अचल स उमन आँख पाछी, और एक श्यामा गौ के पास जा पहुची । गौ न सिर झुका दिया, गाला उसका सिर खुजलान लगी। फिर उसके मुंह-से-मुंह सटाकर दुलार किया। उसके बछडे का गला चूमने लगी। उसे भी छोडकर एक साल-भर के वण्ड को जा पकड़ा। उसके बडे-बड अयाला को अपनी उंगलियो से सुलझान लगी। एक धार वह फिर अपन पशु-मित्रा में प्रसन्न हो गई। युवक चुपचाप एक वृक्ष की जड पर जा बैठा। आधा घण्टा न बीता होगा कि टापो के शब्द सुनकर गाला मुस्करान लगी । उत्कण्ठा स उसका मुख प्रसन्न हो गया। अश्वारोही आ पहुंचे। उनम सबसे आगे उमर म सत्तर बरस का वृद्ध, परन्तु दृढ पुरुष था । क्रूरता उसकी घनी दाढी और मूंछा के तिरछेपन से टपक' रही थी। गाला न उसके पास पहुंचकर घोड से उतरने में सहायता दी। वह भीपण बुड्ढा अपनी युवती कन्या को देखकर पुलरित हो गया। क्षण भर के लिए न जाने कहाँ छिपी हुई मानवीय कामलता उसके मुह पर उमड आई ! उसन पूछा-सब ठीक है न गाला ! काल: १३७