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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२१७

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हो-कही से आता जाता न हो । एक स्थिरता और स्पन्दन होन विवशता गाला को घेरकर मुस्कराने लगी। वह सोच रही थी-शव स परिचित इस जगली भूखड को छोड़ने की बात । गाला क मामन अधकार ने परदा खीच दिया । तव वह घबराकर उठ खडी हुई। इतने म कम्बल और सन्दूक सिर पर धरे नये वहा आ पहुंचा। गाला न कहा-तुम आ गय । हा चलो बहुत दूर चलना है। दूर चले भालू भी पीछे-पीछे था। ककाल १९६