सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

चलता हुआ दिखाई देता है। इसका समाधान करन के लिए काई नियम या सस्कृति असमर्थ है। मुझे ही देखो न मैं ईमाई-समाज की स्वतन्त्रता म जपन को मुरक्षित सम झती थी पर भला मरा धन मरा रहा। तभी हम स्त्रिया के भाग्य म लिखा है कि उडकर भागत हुए पक्षी क पाछ, चारा और पानी म भरा हुआ पिंजरा लिय घूमती रहे। ___ यमुना न कहा-काई समाज और धर्म स्त्रिया का नही वहन । सव पुरुषा क हैं । सव हृदय को कुचलनवाल क्रूर हैं। फिर भी मैं समझती हूँ कि स्त्रियो का एक धर्म है, वह है नाघात सहन की क्षमता रखना । दुर्दैव के विधान न उनके निए यही पूर्णता बना दी है । यह उनकी रचना है। दूर पर नन्दा और घण्टी जाती हुई दिखाइ पड़ी । सतिका न पुकारा दाना ठहर गई । लतिका यमुना के साथ दोना क पास जा पहुंची। ____नन्दो न यमुना की आर सकुचित दृष्टि से देखा, और घण्टी की आखो म स्नेह को भिक्षा थी। सब नुप थी। सवका रहस्य सबका गला घाट रहा था। किसी के मुख में एक शब्द भी न निक्ला । सब यमुना-तट पर पहुंची। ___ स्नान करते हुए घण्टी और लतिका एकत्र हा गई और उसी तरह चाची और यमुना का एक जुटाव हुना । यह आकस्मिक था। घण्टी न अजली म जल लकर लतिका स कहा-बहन । मैं नपराधिनी हूँ, मुझे क्षमा करोगी? लतिका न कहा-वहन | हम लोगों का अपराध स्वय दूर चला गया है। यह तो मैं जान गई है कि इसम तुम्हारा कोई दाप नहीं है। हम दोना एक ही स्थान पर पहुँचनेवाली थी, पर सम्भवत थककर दोना ही लौट आई। कोई पहुच जाता, ता द्वेष की सम्भावना थी एसा ही ता मसार का नियम है, पर अब तो हम दाना एक-दूसर का समझा सकती हैं सन्ताप कर सकती है। घण्टी ने कहा- दूसरा उपाय नही है वहन | ता मुझे क्षमा कर दा । आज से मुझे वहन कहकर बुलाआगो न? नतिका न दखा, नारी-हृदय गल-गलकर जाँखा की राह स उसकी अजली के यमुना जल म मिल रहा है । वह अपन को न राक सको, लतिका आर घण्टी गले स लगकर रोने लगी। लतिका ने कहा--आज स दुख म, सुख म, हम लाग कभी माय न छाडगी। बहन | ससार म गला बाँधकर जीवन विताऊंगा, यमुना माक्षी है। दूर यमुना और नन्दो चाची न इस दृश्य को देखा । नन्दा का मन न जान ककाल १६६