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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२३८

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पर, लोहार की तपाई हुई छुरी जैसे सान रखने के लिए बुझाई जाती हो, वैसे है मेरी प्यास बुझकर भी तीखी होती गई। ____जो लोग पुनर्जन्म मानते हैं, जा लोग भगवान् को मानते हैं, वे पाप का सकते हैं ? नही, पर मैं देखता हूँ कि इन पर लम्बी-चौडी बात करन वाले में इससे मुक्त नही । मैं कितन जन्म लूंगा, इस प्यास के लिए, मैं नहीं कह सकता न भी लेना पडे, नही जानता। पर मैं विश्वास करन लगा है कि भगवान् । क्षमा की क्षमता है। भर्मव्यथा से व्याकुल होकर गोस्वामी कृष्णशरण स जब मने अपना सब समाचार सुनाया, ता उन्हान बहुत देर तक चुप रहकर यही वहा-निरजन, भग वान् क्षमा करत है । मनुष्य भूल करता है, इसका रहस्य है मनुष्य का परिमित ज्ञानाभास । सत्य इतना विराट् है कि हम क्षुद्र जीव व्यावहारिक रूप म उसे सम्पूण ग्रहण करन मे प्राय असमर्थ प्रमाणित हात हैं। जिन्ह हम परम्परागत संस्कारो के प्रकाश म कलकमय देखते हैं, वे ही शुद्ध ज्ञान में यदि सत्य ठहर, तो मुझे आश्चर्य न होगा । तब भी मैं क्या करूं ? यमुना के महमा सघ से चले जाने पर नन्दो ने मुझस कहा कि यमुना का मगल स ब्याह हाने वाला था। हरद्वार म मगल न उसके साथ विश्वासघात करक उस छोड दिया। आज भला जब वही मगल एक दूसरी स्त्री से ब्याह कर रहा है, तब वह क्यो न चली जाती ? मैं यमुना की दुर्दशा मुनकर काप गया। मैं ही मगल का दूसरा व्याह कराने वाला हूँ। आह । मगल का समाचार तो नन्दा ने मुना ही था, अब तुम्हारी भी कथा मुनकर मैं तो स्वय शका करने लगा हूँ कि अनिच्छापूर्वक भी भारतसघ की स्थापना में सहायक बनकर मैने क्या किया है--पुण्य या पाप प्राचीनकाल के इतने बडे-बडे सगठनो मे जडता की दुर्बलता घुस गई। फिर यह प्रयास कितने बल पर है ? --वाह रे मनुष्य । तेरे विचार कितने निस्सवल है--कितन दुर्बल है | - मैं भी जाता हूँ इसी को विचारने किसी एकान्त म । और, तुमस मैं केवल यही कहूँगा कि भगवान पर विश्वास और प्रेम की मात्रा बढातो रहा। किशोरी । न्याय और दण्ड दने का ढकासला ता मनुष्य भी कर सकता है पर क्षमा म भगवान् की शक्ति है। उसकी सत्ता है, महत्ता है, सम्भव है कि इसीलिए, सबके क्षमा के लिए वह महाप्रलय करता हो। तो किशोरी । उसी महाप्रलय की आशा में मैं भी किसी निर्जन कोन में जाता हूँ बस--वस । निरञ्जन !' २१०. प्रसाद वाङ्मय