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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६३

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का कोई उत्तर विना इस कुटिल हसो क मिलना असम्भव था | उसने अभ्यास के अनुसार आधा हँसकर कहा-जी, आ रहे हैं सरकार । वडी सरकार के आने बडो सरकार? हां, बडी सरकार । वह भी आ रही है । कौन है वह ? वही सरकार-- देखो रामदीन, समझाकर कहा । हंसना पीछे। बडी सरकार का अनुवाद करने म उसके सामन वढी बाधाएं उपस्थित हुई किन्तु उन सबको हटाकर उसने कह दिया--सरकार की मां आई हैं। उनके लिए गगा-किनारे वाली छाटी कोठी साफ़ कराने का प्रवन्ध देखने गये है। वहाँ से आते ही होंगे। आते हो हाग? क्या अभी दर है? रामदीन कुछ उत्तर दना चाहता था कि बनारसी साडी का आँचल कधे पर से पीठ की आर लटकाये, हाथ म छोटा-सा वेग लिय एक सुन्दरी वहां आकर खड़ी हो गई । शैला ने उसका भार गम्भीरता स दखा। उसने भी अधिक खोजने वाली आखो से शैला को देखा। दृष्टि-विनिमय म एक-दूसरे का पहचानन की चेप्टा हाने लगी, किन्तु कोई बोलता न था। शैला बडी अमुविधा में पड़ी। वह अपरिचित स क्या बातचीत करे ? उसन पूछा-आप क्या चाहती है ? ____ आने वाली ने नम्र मुस्तान स कहा-मरा नाम मिस अनवरी है । क्या किया जाय, जब कोई परिचय करानेवाला नही तो ऐसा करना ही पड़ता है । मैं कुंवर साहेव की मां को देखने के लिए आया करती हूँ। आपको मिस शैला समझ लूं? जो-कहकर शैला ने कुर्सी वढा दी और शोतल दृष्टि से उस बैठने का सकेत किया। उधर चौबेजी चाय ले आ रह थे। शैला ने भी एक कुर्सी पर बैठते हुए कहा-आपके लिए भी अनवरी और शैला आमने-सामन बैठी हुई एक-दूसरे को परखने लगी । बनवरी की सारी प्रगल्भता धीरे धीरे लुप्त हा चली। जिस गर्मी से उसने अपना तितली २३५