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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२७८

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ता वह वाली अन्छा तो है माँ ! मम साहब और अनवरी वीवो इसम आ जायेंगी । हम लाग वही चलकर रहे ।। अनवरी न वहा- मुझे एक दिन म लौट जान दीजिए। श्यामदुलारी ने दखा कि काम तो हा चला है, अब इस बात का यही रोक देना चाहिए । वह बोली-वेटा । कलेक्टर साहव ने नमूने का गांव वसान का जा नक्शा भेजा था, उसे तुमन देखा ? नही मां, अभी तो नही-शैला क पास वह है । इन्ह गांवा से बडा प्रेम है । मैन इन्ही के ऊपर यह भार छोड दिया है। इसके लिए यही एक योजना तैयार करने मे लगी हैं। ___श्यामदुलारी सावधान हा गई । शैला न कहा-मां जी, अभी तो मैं गांवो में जाकर यहाँ की बाते समझन लगी हूँ। फिर भी बहुत-सी बात अभी नही समझ सकी है। किसी दिन आपको अवकाश रहे, तो मैं नक्शा ले आऊँ ? चौवे जो न एक बार माधुरी की ओर देखा और माधुरी ने अनवरी का। तीना का भीतर-ही-भीतर एक दल-सा बंध गया । इधर मां, बेटे की ओर होन लगी-और शला, जो व्यवधान था, उसकी खाई म पुल बनाने लगी। श्यामदुलारी का हृदय, बटे को काम को बाता म मन लगाते दख कर, मिठास स भरन लगा। उन्होन कहा-अच्छा, तो मैं अब पूजा करने जाता हूँ। बीबी । मिस अनवरी को जान दो, कल आ जायंगी। हां, एक बात तो मैं भूल हा गई थी-मिस अनवरी, आप आने लगिए, तो कृष्णमोहन को छुट्टी दिलाकर साथ लिवाते आइएगा। श्यामदुलारी न माधुरी को भी प्रसन्न करने का उपाय निकाल ही लिया । अनवरी ने कहा-बहुत अच्छा। शैला ने कहा-- मै आपके पास आकर कभी-कभी बैठा करूं, इसके लिए क्या आप मुझे आज्ञा दगी माँ जी । क्यो नही, आपका घर है, चाहे जब चली आया कर । मुझे तो अपन दश की कहानी आपने सुनाई ही नही। नही, मैं इसलिए आज्ञा मांगती थी कि मेरे आन स आपका कष्ट न हो। मुझे अलग कुर्सी पर बैठाया कीजिए। मै आपका एऊंगी नही |--शैला न बडी सरलता से कहा। श्यामदुलारी न हंसकर कहा- वाह ! यह तो मेरे सिर पर अच्छा कलक है। क्या मैं किसी का छूती नहीं ? आप आइए, मुझे आपकी बाते बडी मोठी लगती है। २५० प्रसाद वाङ्मय