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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२८६

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चौवे, जो पहले कुंवर साहब की रसोई बनाता था, आकर न मालूम क्या धीरेधीरे फुसफुसा जाता है । बस फिर क्या पूछना ! जिसकी दुर्दशा होनी हो वही सामने पड़ जाय। क्यो रे, चौबे तो पहले तेरे कुंवर साहब के बडे पक्षपाती थे । अब क्या हुआ जो छावनी की बातें अच्छी तरह सुनने के लिए राजकुमारी ने पूछा । कोई भी स्वार्थ न हो, किन्तु अन्य लोगो के कलह से थोड़ी देर मनोविनोद कर लेने की मात्रा मनुष्य को साधारण मनोवृत्तियों मे प्राय मिलती है। राजकुमारी व कुतूहल को तृप्ति भी उससे क्यो न होती? मलिया कहने लगी-मालक्नि ! यह सब मैं क्या जानूं, पहले तो चौबेजी बडे हंसमुख बने रहते थे। पर जब से बडी सरकार आई हैं, तव से चौबेजी इसी दरबार की ओर झुके रहते हैं। कुंवर साहब से तो नही पर मेम साहब से वह चिढते हैं । कहत है, उसकी रसोई बनाना हमारा काम नहीं है । बीबीरानी से और भी न जाने क्या-क्या उसकी निन्दा करते हैं । सुना था, एक दिन वह रसोई बना रहे थे, भूल से मेम साहब जूते पहन रसोई-घर मे चली आई, तभी से वह चिढ गये, पर कुछ कह नही सकते थे। जब बडी सरकार आ गई, तो उन्हाने इधर ही अपना डेरा जमाया। अब तो वह छोटी कोठी जाकर, वहा क्या-क्या चाहिए~यही देख आते हैं__क्यो रे । क्या तेरे कुंवर साहब इस मेम से ब्याह करेगे? ___मैं क्या जानूं मालकिन | अब छुट्टी मिले । जाऊँ, नही तो रसोईदार महा राज ही दो-चार बात सुनावगे। अच्छा, जा, अभी तो चाचा के पास जायगी न ? हाँ, उधर से होती हुई चली जाऊँगी-कहकर मलिया अपने घर चली। राजकुमारी से आकर रामदीन की नानी ने कहा-चलिए, अपनी रसोई देखिए । अभी मधुबन वावू तो नही आये । राजकुमारी ने एक बार शेरकोट के उजडे खंडहर की आर देखा और धीरेधीरे रसोई घर की ओर चली। रोटी सेकते हुए राजकुमारी ने पूछा-बुढिया, तू ने मलिया के चाचा से कभी कहा था। क्या मालकिन ? रामदीन से मलिया को सगाई के लिए । अव कव तक तू अकेली रहेगी? अपने पेट के लिए तो वह पाजी जुटा ले, सगाई करके क्या करेगा माल २५८. प्रसाद वाङ्मय