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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२३

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मधुबन न सिर झुका लिया। रामनाथ ने कहा-मधुबन । कुछ ही दिनो में एक नई घटना होने वाली है । वह अच्छी होगी या बुरी, नही कह सकता। किन्तु उसके लिए हम सबको प्रस्तुत रहना चाहिए। क्या ? ---मधुबन ने सशक होकर पूछा। शैला को मैं हिन्दू-धर्म की दीक्षा दूंगा।-स्थिर भाव से रामनाथ ने कहा। मधुबन ने उद्विग्न होकर कहा--तो इसम क्या कुछ अनिप्ट की सभावना __ विधाता का जैसा विधान होगा, वही होगा। किन्तु ब्राह्मण का जो कर्तव्य है, वह करूंगा। तो मेरे लिए क्या आज्ञा है ? मैं तो सब तरह प्रस्तुत हूँ। हूँ, और उसी दिन तुम्हारा ब्याह भी होगा। उसी दिन | वह लज्जित होकर कह उठा । तितली चली गई। क्यो, इसमे तुम्हे आश्चय किस बात का है ? राजकुमारी को स्वीकृति मुझे मिल ही जायगी, इसकी मुझे पक्की आशा है। ____ जैसा आप कहिए। --उसने विनत्र होकर उतर दिया। किंतु मन ही मन बहुत-सी बातें सोचने लगा-तितली को लेकर घर-बार करना होगा । और भी क्या-क्या रामनाथ न बाधा देकर कहा-आज पाठ न होगा। तुम कई दिन से घर नही गये हो, जाओ! वह भी छुट्टी चाहता ही था। मन में नई-नई आशाएं, उमग और लडकपन के-स प्रसन्न विचार खेलने लगे। वह शेरकोट की ओर चल पड़ा। ___रामनाथ स्थिर दृष्टि से आकाश की ओर देखने लगा। उसके मुंह पर स्फूर्ति थी, पर साथ म चिंता भी थी अपने शुभ सकल्पो को-और उसमे बाधा पहने की संभावना की। फिर वह क्षण भर के लिए अपनी विजय निश्चित समझते हुए मुस्कुरा उठे । बनजरिया को हरियाली में वह टहलने लगे। उनके मन मे इस समय हलचल हो रही थी कि ब्याह किस रीति स किया जाय । बारात तो आवेगी नही। मधुवन यह चाहेगा ता? पर मैं व्यर्थ का उपद्रव बढ़ाना नहीं चाहता । वो भी उसके और तितली क लिए कपड ता चाहिए हो, और मगल-सूचक कोई आमरण तितली के लिए ! अर, मैंने अभी तक किया क्या? वह अपनी असावधानी पर सल्लाते हुए शापडी के भीतर कुछ ढूढन चल । तितलो २५