सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

___माधुरी न इन्द्रदेव का बुलाकर उसका सब वृत्तान्त कुछ नोन-मिर्च लगाकर मुनाते हुए पुलिस मे भेजने के लिए कहा । इन्द्रदेव न सिर हिला दिया। वह गम्भीर होकर सोचने लगे । वात क्या है 1 शैला के यहाँ से जाते हो रामदीन को हो क्या गया। इसम भी आप सोच रहे है | भाई साहब, मैं कहती हूँ न, इसे पुलिस मे अभी दीजिए, नही तो आगे चलकर यह पक्का चोर बनेगा और यह देहात इसके अत्याचार से लुट जायगा। -माधुरी ने झल्लाकर कहा । इन्द्रदेव को माधुरी की इस भविप्यवाणी पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने कहा-लडको को इतना कडा दण्ड देने से सुधार होने की सम्भावना तो बहुत ही कम होती है, उलटे उनके स्वभाव में उच्छुहलता बढती है। उसे न हो तो शैला के पास भेज दो। वहाँ ठीक रहेगा। माधुरी आग हो गई-उन्ही के साथ रहकर तो बिगडा है। फिर वहा न भेजूंगी । मैं कहती हूँ, भाई साहब, इसे पुलिस मे भेजना ही होगा। अनवरी ने भी दूसरी ओर से आकर क्रोध और उदासी से भरे स्वर में कहा -दूसरा कोई उपाय नही। ___ अनवरी का बेग गुम हो गया था, इस पर भी विश्वास करना ही पड़ा । इन्द्रदेव को अपने घरेलू सम्बन्ध म इस तरह अनवरी का सब जगह बोल देना बहुत दिनो से खटक रहा था। किन्तु आज वह सहज की सीमा को पार कर गया । क्रोध से भरकर प्रतिवाद करने जाकर भी वह रुक गये । उन्होने देखा कि हानि तो अनवरी की ही हुई है, यहाँ तो उसे बोलने का नैतिक अधिकार ही रामदीन बुलाया गया । अनवरी पर जो काध था उसे किसी पर निकालना ही चाहिए, और जब दुर्बल प्राणी सामने हो तो हृदय के सन्तोप के लिए अच्छा अवसर मिल जाता है । रामदीन न सामने आते ही इन्द्रदेव का रूप देखकर रोना आरम्भ किया। उठा हुआ थप्पड रुक गया। इन्द्रदेव ने डाँटकर पूछा-क्यो बे, तूने मनीवेग चुरा लिया है ? ___मैने नही चुराया । मुझे निकालने के लिए डाक्टर साहब बहुत दिनो से लगी हुई है । ए-ए-ए । एक दिन कहती भी थी कि तुझे पुलिस मे भेजे बिना मुझे चैन नही । दुहाई सरकार को, मेरा खेत छुडाकर मेरी नानी को भूखो मारने की भी धमकी देती थी। इन्द्रदेव ने कडककर कहा-चुप बदमाश | क्या तुमसे उनकी कोई बुराई है जा वह एसा करेगी? ३०० : प्रसाद वाडमय