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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३५२

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महंगू ने कहा-सरकार ने बुलाया है क्या? बेचारा बूढ़ा घबरा गया था। सरकार को बुलाना होता तो जमादार आता। महँगू! मैं क्यो आया हूँ, जानते हो । तुम्हारी भलाई के लिए तुम्ह समझान आया हूँ। मैंने क्या किया है तहसीलदार साहब । तुम्हारे यहाँ मलिया रहती है न । तुम जानत हा कि वह वीवी-रानी छाटी सरकार का काम करती थी। वह आज कितने दिनो स नही जाती । उसको उक्साकर बिगाडना तो नही चाहिए । डांटकर तुम कह दते कि 'जा, काम कर' तो क्या वह न जाती? मैं कैसे कह देता तहसीलदार साहव । कोई मजूरी करता है तो पेट भरने के लिए, अपनी इज्जत देन के लिए नही। हम लोगो के लिए दूसरा उपाय ही क्या है । चुपचाप पर भी न बैठे रह । देखो महँगू, ये सब बाते मुंह से न निकालनी चाहिए। तुम जानते हो कि मैं जानता हूँ कि नही, इससे क्या? वह जाय तो आप लिवा जाइए । मजूरी ही तो करेगी। आपके यहां छोडकर मधुवन बाबू के यहाँ काम करने में कुछ पैसा वढ ता जायगा नहीं। हां, वहां तो उसको बोझ लेकर शहर भी जाना पडता है। आपके यहा करे तो मेरा क्या ? पर हो, जमीदार मा-बाप हैं । उनके यहां ऐसा मधुवन बाबू । हूँ, कल का छोकरा । अभी तो सीधी तरह धोती भी नही पहन सकता था। 'बाबा तो सिखाकर चला गया। उसका मन बहक गया है। गसको भी ठीक करना होगा। अब मैं समझ गया । महंगू । मेरा नाम तुम भी भूल गये हो न? अच्छा, आपसे जो वने, कर लीजिएगा । मैंन क्या किसी की चोरी की है या कही डाका डाला है ? मुझे क्यो धमकाते हैं ? महंगू भी अपने अलाव से सामने आवेश म क्यो न आता ? उसके सामन उसकी वखारे भरी थी। कुडो म गुड था। लडके पोते सब काम में लगे थे। अपमान सहने के लिए उसके पास किसी तरह की दुर्बलता न थी । पुकारते ही दस लाठियां निकल सकती थी। तहसीलदार ने समझ-बूझकर धीरे से प्रस्थान किया । महंगू जव आपे में आया तो उसको भय लगा। वह लडका को गाने-बजान के लिए कहकर बनजरिया की ओर चला । उस समय तितली बैठी हुई चावल विन रही थी, और मधुबन गले म कुरता डाल चुका था कही वाहर जाने के लिए! ३२४ प्रसाद वाङ्मय