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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३९९

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मुकुन्दलाल ने कहा-हां, हो, कहो क्याकि स्त्रियो को हो धन को आवश्यकता है । और सभवत वे ही इसकी रक्षा भी कर सकती हैं। तो फिर ठीक रहा । कल ही इसका प्रवन्ध कर दो। सब लोग हाथ-मुंह धोकर अपनी कुसियो पर आराम से बैठे ही थे कि सरूप न आकर कहा-बैरिस्टर साहब से मिलने के लिए एक स्त्री आई है । उसका काई मुकद्दमा है। सब लोग चुप रहे। शैला सोच रही थी कि क्या स्त्रियां सचमुच धन की लोलुप हैं । फिर उसने अपने ही उत्तर दिया -नही, समाज का सगठन ही ऐसा है कि प्रत्येक प्राणी को धन की आवश्यकता है। इधर स्त्री को स्वावलम्वन से जब पुरुष लोग हटाकर, उकके भाव और अभाव का दायित्व अपने हाथ में ले लेते हैं, तब धन को छोडकर दूसरा उनका क्या सहारा है ? इतन मे सरूप गरम कमरे म चाय की प्याली सजाने लगा। नन्दरानी भोजन करने बैठी । उससे खाया न गया। दालान म परदे गिरा दिये गये थे । ठडी हवा चलने लगी थी। किन्तु नन्दरानी झटपट हाथ-मुंह धोकर पान मुख मे रखकर वही एक आरामकुर्सी पर अपनी ऊनी चादर मे लिपटी हुई पड़ी रही, उसके मन म सकल्प-विकल्प चल रहा था। आज तक का उसका त्याग, कुछ मूल्य पर बिकने जा रहा है। उसका मन यह मूल्य लेने से विद्रोह कर रहा था। तब भी जीवन के कितने निराशा भरे दिन काटने हागे । ज्योतिषी ने कह दिया है कि बाबू मुकुन्दलाल अव अधिक दिन जीने के नही हैं उनका भीतरी शरीर भग्न पोत की तरह काल-समुद्र मे धीरे-धीरे धंसता जा रहा है, फिर भी, उस कर्जस्वित आत्मा का केतु अभी डुबा देने वाले जल के ऊपर ही है। उनकी अवस्था पचास वर्ष की और नन्दरानी की चालीस की है। किन्तु ससार जैसे उनके सामने अन्तिम घडियां गिन रहा है। गार्हस्थ्य जीवन के मगलमय भविष्य में उनका विश्वास नही । उसमे रहते हुए भी पुराना सस्कार, उन्हे थके हुए पाडे के लिए टूटा हुआ छकडा बन रहा है, वह जैसे उसे घसीट रहे हैं। ____किन्तु मुकुन्दलाल के लिए यह अवस्था तभी होती है जब वह नन्दरानी को अपने जीवन के साथ मिलाकर देखते हैं। फिर जैसे अपने स्थान को लौटकर सितारी, मित्र वर्ग और उनके आतिथ्य-सत्कार मे लग जाते हैं। ___नन्दरानी खिन्न होकर सो गई। उसन नही जाना कि कब शैला और इन्द्रदेव दूसरी और चले गये। मुकुन्दलाल ने सोने के कमरे म जाते हुए देखा कि नन्दरानी अभी वही पडी तितली ३७५