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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४३२

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काल्पनिक मुख पाने के लिए, जैसे बेच दिया। उस दरिद्र भूतकाल न मुझे सुख के लिए लोलुप बना दिया। क्या मैं सचमुच इन्द्रदेव का प्यार करती हूँ। मैं उतना ही कर सकती हूं, जितना मधुबन के लिए तितली कर रही है । उसके भीतर स जैसे किसी ने कहा 'ना' । वह अपनी नग्न मूर्ति देखकर भयभीत हो गई। उसने चारा ओर अवलम्ब खोजने के लिए आँख उठाकर देखा । आह | वह कितनी दुर्बल है । यह वाट्सन | इस सुन्दर व्यापार में कहाँ स आ गया। और अब तो मेरे जीवन के गणित मे यह प्रधान अक है । तो उसने इन्द्रदव का और भयभीत हाकर देखा, क्या वह कुछ समझने लगा है। इन्द्रदेव ने कहा-मैं तो समझता हूँ कि अब हम लोगा को चलना चाहिए, क्याकि आज ही रात को मुझे शहर लोट जाना है। कल एक अपील में मेरा वहाँ रहना आवश्यक है। शैला न समझा कि यह पिण्ड छुडाना चाहता है। उस क्या सन्दह हाने लगा है ? हो सकता है। एक बार इसी वाट्सन का लकर भ्रम फैल चुका है। किन्तु यह कितनी बुरी बात है । जिसने मेरे लिए सब त्याग किया ! वाट्सन ने बीच मे कहा-अच्छा, तो मैं इस समय जाता हूँ। हाँ, सुना, परती के लिए एक बात और भी कह देना चाहता हूँ। क्या उसे थोडे-से लगान पर तुम ले लेना स्वीकार करोगी? इससे तुम्हारा यह खेत पूरा बन जायगा । चाहागी तो थोडा-सा परिश्रम करने पर यहाँ पेड लगाये जा सकेंगे और तब तुम्हारी खेती-बारी दोनो अच्छी तरह होने लगेगी। हाँ, तब मै ले सकूँगी। आपको इस न्यायपूर्ण सम्मति के लिए मैं धन्यवाद देती हूँ। तितली ने नमस्कार किया। इन्द्रदेव, वाट्सन और शैला, सबने एक बार उस स्वावलम्ब के नीड-बनजरिया---को देखा, और देखा उस गर्व से भरी अबला को। सब लोग चल गये। तितली सांस फककर एक विश्राम का अनुभव करने लगी। इस मानसिक । युद्ध में वह जैसे थक गई थी। उसने लडकियो को एट्टी देकर विश्राम किया । ४०८. प्रसाद वाङ्मय