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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५४०

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भी तुम लोगो के साथ हूँ।"—कह कर अग्निमित्र ने खड्ग कोश से निकाल कर ऊंचा किया । क्षण-भर मे बीसो खड्ग चमकने लगे । और घनदत्त । वह तो इस रक्षा की व्यवस्था को देखकर घबरा गया था। अभी बूंदे पड़ रही थी। आकाश निविड कृष्ण वर्ण का हो रहा था। कालिन्दी, इरावती और केयूरक के साथ खारवेल भी वही चले आ रहे थे। ___पाटलिपुत्र का राजपथ उस काली रात्रि मे सुनसान नही था । रह-रह कर घोडो के टाप सुनाई पडते थे। ऐसा जान पडता था, प्रायः सब राज-कर्मचारी मुगाग प्रासाद के विशाल प्रागण की ओर जा रहे है। ब्रह्मचारी भी इन्ही में से एक दल के पीछे-पीछे चला। चतुष्पथ तथा और भी आवश्यक स्थानो पर उल्काएँ जल रही थो । वर्षा कुछ कम । [अपरिसमाप्त ]