यलोरा में जितने गुफा-मन्दिर हैं-बौद्ध, जैन और हिन्दू—
सबमे कैलाश प्रधान है। दक्षिण मे पट्टदकल नामक एक
प्राचीन स्थान है। उसमे "विरूपाक्ष' नाम का एक पुराना
मन्दिर है। यह मन्दिर चालुक्य-वंशोय दूसरे विक्रमादित्य
राजा की रानी ने, ७३० ईसवी के लगभग, बनवाया था।
कैलाश मन्दिर विरूपाक्ष से बहुत कुछ मिलता है। इस बात
से, तथा कैलाश में जो एक शिलालेख का टूटा हुआ टुकड़ा
मिला है उससे, यह अनुमान किया जाता है कि ७३०-७५५
ईसवी में, यह मन्दिर राष्ट्रकूट ( राठोड़ ) वंशीय राजा दान्ति-
दुर्ग के राज्यकाल मे बना था। सम्भव है, दान्तिदुर्ग ह यह मन्दिर अपनी प्रकाण्डता और अपने प्रकाण्डता और अपने अद्भुत शिल्प-कर्म के लिए, भरतखण्ड भर मे, सब प्राचीन इमारतो में प्रधान है। इसका केवल भीतरी भाग ही पर्वत काटकर नहीं बनाया गया, किन्तु बाहरी भाग भी। पर्वतीय चट्टान का एक प्रचण्ड भाग काटकर पहले अलग कर दिया गया है। फिर उस अलग किये गये प्रस्तर-समूह को भीतर और बाहर तराशकर उसी का मन्दिर बनाया गया है। पहाड़ से एक हाथ भर का सुडौल टुकड़ा काटने में कितना श्रम और कितनी कुशलता दरकार होती है, फिर मण्डप-
मण्डित और अनेक शिखरधारी एक विशाल मन्दिर को,
पत्थर तराशकर, खड़ा कर देना कितने श्रम, कितने व्यय
और कितनी कारीगरी का काम है, यह विचार करने पर
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यलोरा के गुफा-मन्दिर