इस पहाडी पर एक जगह है जिसे नाहर-घाटी कहते हैं। बरसात में यहाँ पहाड़ से पानी गिरा करता है। यहाँ से भी बेतवा तक पत्थर काटकर सीहियों बनाई गई हैं। वे टूट-फूट गई हैं। यहाँ कई ताक हैं, जिनमे एक सूर्य की मूर्ति, एक शङ्कर का लिङ्ग और सप्तमातृकाओ की मूर्तियों के कुछ चिह्न हैं। गुप्त-वंशी राजो के समय का एक शिला-लेख यहाँ पर है, उसमें कई पंक्तियाँ है, परन्तु राजा का नाम उड़ गया है।
गुप्त-काल के पीछे बना हुआ एक वराह-मन्दिर यहाँ पर था। परन्तु इस समय वह बिलकुल ही भग्न हो गया है। तथापि वराह की विशाल मूर्ति अब तक अपने स्थान पर है।
गुप्त-वंशी राजो के बाद के बने हुए मन्दिरो में एक जैन-
मन्दिर, इस पहाड़ो के ऊपर, बहुत बड़ा है। उसके पास छोटे-
मोटे कोई ३० मन्दिर और हैं; परन्तु उनमे एक प्रमुख है।
ये सब मन्दिर अत्यन्त गहन वन के भीतर हैं। बड़े मन्दिर
के चारो तरफ़ बरामदा था, परन्तु अब केवल एक ही तरफ़
रह गया है। भीतर एक बहुत बड़ा शिला-मूर्ति जैन-तीर्थङ्कर
की है। छोटी-छोटी मूर्तियाँ तो कई हैं। मन्दिर के भीतरी
भाग के दो खण्ड हैं। पिछले खण्ड मे बहुत अँधेरा रहता
है। मन्दिर के चारो ओर प्रदक्षिणा है। उसमे जगह-जगह
पर पत्थर की जालियाँ हैं, जिनसे प्रकाश आया करता है।
इसी प्रदक्षिणा में भालु-भूप के रहने के चिह्न हमको मिले थे।
यहाँ पर एक खम्भा है जिस पर, ऊपर से नीचे तक, सब