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पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/७६

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प्राचीन पंडित और कवि

प्राचीन पडित और कवि श्रानाकानी की। जब दो यार कहने पर भी उसे सोलने का वैर्य न टुया तव सुखदेवजी ने उस पात्र और पत्तल के ढकन को खद् खोल दिया । सोलते ही, उनके कहन क मुताविक, उनमें दूध और गुड़हल के फूल देस पड़े। यह करके सुसदेवजी ने फूलों से भरी हुई वह पत्तल तारा के यंत्र के ऊपर जोर से उलट दी और दूध भी उसी पर डाल दिया। फिर श्रापने पूजन नहीं किया और उसी वक्त यहा से प्रस्थान करने को तैयार हो गये। यह सव लीला देखकर भगवंतराय चकित हो उठा। उसने अनेक प्रकार से क्षमा प्रार्थना की। उसके यहाँ बहुत-से और पडित तथा कवि थे। उनको भी मध्यस्थ करके उसने अपना अपराध क्षमा करा की कोशिश की परंतु सब व्यर्थ हुश्रा। सुखदेवजी उसा दिन वहाँ से चले आये और फिर कभी वहॉ नहीं गये। दौलतपुर से २ मील दूर, गगा के किनारे, चकसर नाम का एक गाँव है। उसके पास ही चडिका का एक प्राचीन मंदिर है। सुखदेवजी असोथर से रवाना होकर वहीं पाये और एक कुटी में विरक्तवत् रहने लगे। चडिका के मंदिर से थोड़ी दूर पर डाडियाखरा नामक एक गॉर था। उसमें मर्दनसिंह नामधारी एक नअल्लुकेदार थे । उनको राव का खिताय था। उस प्रांत में उनकी प्रभुता सय बढी-चढ़ी थी। बादशाह त टन्होंने कई परगनों की मालगुजारी वसूल करने का