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पृष्ठ:प्राचीन पंडित और कवि.djvu/९

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'प्राचीन पंडित और कवि'


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भवभूति

प्राचीन कवियों, पंडिलों और नाटककारों के विषय में दो पक को छोड़कर हिंदी के अन्य अनुरागी सजन प्रायः कभी उप लिवने ही नहीं। हिंदी का साहित्य इस प्रकार के निबंधों मे शून्य-सा हो रहा है । जैसे और-और बातों में मंगला भीर मराठी भाषा का माहित्य दिदी के साहित्य से या हुआ है. वैसे ही यह इस विषय में भी है। महामहो पाध्याय मतीशका विद्याभूषण, पडित विष्णु कृपा शानी चिपलूणकर भीर पंडित माधवराव परेश लेले इत्यादि निशानों में, अपनी-अपनी वेश-भाग में भयभूति के विषप में, बन लिलाप्रोमा विलमन, मर मानियर पिनिगम्म, बोनमक, भांडारकर मार दल इत्यादि ने भी माभूति उप कारों की प्रसंगा परने में अपनी नगरमी पा सदुपयोग किया।पांतु, हिदी में, उदाता मागपियों ने विमान कामग, भाति, भाव, गु अंग एम व मानवविधा पर, मराण में, पांव निबंध