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पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/१५९

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सातवाँ प्रभाव कमलनेनी है और देखिये कि लोकमर्यादा और खज्जा के लोपने में बड़ी निकुण है। अपना लतारूपी बाहुओं से बूढ़े ज्वान और बालक मुंडों के उरों से उमंग पूर्वक प्रत्यक्ष लपटती है। उसके अधर पल्लव का रस जब शराजी लोग पीते हैं तब वह हृदय से प्रसन्न होती है । सुन्दर पिकबैनी और सुख की सागर ही है। उसकी सदा यही पति रहती है और शरीर से सुगंध भी फैलती रहती है। सातवां प्रभाव समाप्त