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पृष्ठ:प्रिया-प्रकाश.pdf/३११

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चारहवाँ प्रभाव (पुनः) मूल-राजभार, रजभार, लाजमार, भूमिभार, भवभार, जयभार नीके ही अटतु हैं । प्रेमभार, पनभार, केशव संपत्ति भार, पतिमार युत अति युद्धनि जुटतु हैं ।। दानभार, मानभार, सकल सयान भार, भोगभार, भागभार घटना घटतु हैं। एते भार फूल सम राज राजा राम सिर, तेहि दुख शत्रुन के शीरष फटतु हैं ॥ १० ॥ शब्दार्थ -रजभार= रजपूती (क्षत्रीपन) का भार । भवभार = संसार की उन्नति का भार । नीके ही अस्तु हैं अच्छी तरह लिये फिरते हैं। पनप्रतिज्ञा। पति प्रतिष्ठा । जुटतु हैं - भिड़जाते हैं । घटना घटतु हैं = काम करते हैं । शीरष-सिर । भावार्थ-सरल ही है। (व्याख्या )-भार हैं राजा राम सिर पर और बोझ से सिर फटते हैं शत्रुओं के। दूसरे के गुण से दूसरे को दोष वर्णन किया। (पुनः) मूल-पूत भयो दशरथ को केशव देवन के घर बाजी वधाई । लि कै फूलन को बरौं, तरु फूलि फले सबही सुखदाई ।। छीर बहीं सरिता सब भूतल, धीर समीर सुगंध सुहाई । सर्वसु लोग लुटावत देखि कै दारिद देह दरार सी खाई ॥११ -