को मित्र मत बनाओ, कृतली स्वामी की सेवा म करो (उसका
दार छोड़ दो ) और सदोष कविता न रबो अर्थात् इतने
कार्य विफल वा निन्दनीय हैं।
( दोष नाम)
मूल- अंध बधिर अरु पंगु तजि नन्न मृतक मतिशुद्ध !
भावार्थ--हे मति शुद्ध ! ( बुद्धिमान कविगण ) पांच प्रकार
की कविता त्याज्य है जिनके नाम अंध, बधिः, पंगु, ना और
मृतक है।
( दोष लक्षण)
अंध विरोधी पंथ को, बधिर सु शब्द विरुद्ध ॥ ७ ॥
छंद विरोधी पंगु गनि, नग्न जु भूषण हीन ।
मृतक कहावै अर्थ विनु. केवश सुनहु प्रबीन ॥ ८ ॥
भावार्थ-
(३) कवियो की बांधी हुई रीति से विरुद्ध कहना 'अंध दोष है।
(२) परस्पर विरुद्ध शब्दों का प्रयोग करना 'बधिर' नामक
(३) छंद शास्त्र के विरुद्ध छंद रचना करला पंगु' नामक
(४) अलंकार रहित छंद रचला 'ना नामक दोष
कहलाता है।
(५) और हे प्रवीनराय ! केशव कहने हैं कि निरर्थक शब्दों के
प्रयोग से कविता में कृतक' नामक दोष आता है।
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तीसरा प्रभाव