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पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/१५८

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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ

प्रकाश ने उनका आशय समझकर कहा-अरे साहब, पत्थर नहीं मारते, बमगोले मारते हैं। देव-सा तो डोल-डौल है, और बलवान इतने हैं कि एक घुसे में शेरों का काम तमाम कर देते हैं। कोई ऐसा वैसा आदमी हो, तो एक हो पत्थर में टें हो जाय। कितने ही तो मर गये; मगर आज तक झक्कड़ बाबा पर मुकदमा नहीं चला। और दो-चार पत्थर मारकर ही नहीं जाते, जब तक आप गिर न पड़ें और बेहोश न हो जायँ, वह मारते जायेंगे; मगर रहस्य यही है कि आप जितनी ज्यादा चोटें खायेंगे, उतने ही अपने उद्देश्य के निकट पहुँचेंगे...

प्रकाश ने ऐसा रोएँ खड़े कर देनेवाला चित्र खींचा कि छोटे ठाकुर साहब थर्रा उठे। पत्थर खाने की हिम्मत न पड़ी।

( ४ )

आखिर भाग्य के निपटारे का दिन आया-जुलाई की बीसवीं तारीख। कत्ल को रात! हम प्रातःकाल उठे, तो जैसे एक नशा चढ़ा हुआ था, आशा और भय के द्वन्द्व का। दोनों ठाकुरों ने घड़ी रात रहे गंगा-स्नान किया था और मन्दिर में बैठे पूजन कर रहे थे। आज मेरे मन में श्रद्धा जागी। मंदिर में जाकर मन-ही-मन ठाकुरजी की स्तुति करने लगा-अनाथों के नाथ, तुम्हारी कृपा-दृष्टि क्या हमारे ऊपर न होगी? तुम्हें क्या मालूम नहीं, हमने कितनी मुशकिल से टिकट खरीदे हैं। तुम तो अन्तर्यामी हो। संसार में हमसे ज्यादा तुम्हारी दया कौन deserve करता है? विक्रम सूट-बूट पहने मन्दिर के द्वार पर आया, मुझे इशारे से बुलाकर इतना कहा-मैं डाकखाने जाता हूँ, और हवा हो गया। जरा देर में प्रकाश मिठाई के थाल लिये हुए घर में से निकले और मंदिर के द्वार पर खड़े होकर कंगाली को बाँटने लगे, जिनकी एक भीड़ जमा हो गयी थी। और दोनों ठाकुर भगवान् के चरणों में लौ लगाये बैठे हुए थे, सिर झुकाये, आँखें बन्द, अनुराग में डूबे हुए।