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पृष्ठ:प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां.djvu/३१

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जुलूस


दूकानें लूटने या मोटरें तोड़ने नहीं निकले हैं। हमारा मकसद इससे कहीं ऊँचा है।

बीरबल--मुझे यह हुक्म है कि जुलूस यहाँ से आगे न जाने पाये।

इब्राहिम--आप अपने अफसरों से जरा पूछ न लें।

बीरबल--मैं इसकी कोई जरूरत नहीं समझता।

इब्राहिम--तो हम लोग यहीं बैठते हैं। जब आप लोग चले जायेंगे तो हम निकल जायेंगे।

बीरबल--यहाँ खड़े होने का भी हुक्म नहीं है। तुमको वापस जाना पड़ेगा।

इब्राहिम ने गम्भीर भाव से कहा-वापस तो हम न जायेगे। आपको या किसी को भी हमें रोकने का कोई हक नहीं है। आप अपने सवारों, संगीनों और बन्दूकों के जोर से हमें रोकना चाहते हैं, रोक लीजिए; मगर आप हमें लौटा नहीं सकते। न जाने वह दिन कब आयेगा, जब हम, हमारे भाई-बन्द ऐसे हुक्मों की तामील करने से साफ इन्कार कर देंगे, जिनकी मंशा महज कौम को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रखना है।

बीरबल ग्रेजुएट था। उसका बाप सुपरिण्टेण्डेण्ट पुलिस था। उसकी नस-नस में रोब भरा हुआ था। अफसरों की दृष्टि में उसका बड़ा सम्मान था। खासा गोरा-चिट्टा, नीली आँखों और भूरे बालोंवाला तेजस्वी पुरुष था। शायद जिस वक्त वह कोट पहनकर ऊपर से हैट लगा लेता तो वह भूल जाता था कि मैं भी यहीं का रहने वाला हूँ। शायद वह अपने को राज्य करनेवाली जाति का अंग समझने लगता था; मगर इब्राहिम के शब्द में जो तिरस्कार भरा हुआ था, उसने जरा देर के लिए उसे लज्जित कर दिया; पर मुआमला नाजुक था। जुलूस को रास्ता दे देता है, तो जवाब तलब हो जायगा; वहीं खड़ा रहने देता है, तो यह