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452:प्रेमचंद रचनावली-5
 

बाद जेल से बाहर निकलकर सुखदा को ऐसा उल्लास हो रहा था, मानो कोई रोगी शय्या से उठा हो। जी चाहता था, सामने के मैदान में खूब उछले और मुन्ना तो चिड़ियों के पीछे दौड़ रहा था।

लाला समरकान्त वहां पहले ही से बैठे हुए थे। मुन्ने को देखते ही गद्गद हो गए और गोद में उठाकर बार-बार उसका मुंह चूमने लगे। उसके लिए मिठाई, खिलौने, फल, कपड़ा, पूरा एक गट्ठर लाए थे। सुखदा भी श्रद्धा और भक्ति से पुलकित हो उठी, उनके चरणों पर गिर पड़ी और रोने लगी, इसलिए नहीं कि उस पर कोई विपत्ति पड़ी है, बल्कि रोने में ही आनंद आ रहा है।

समरकान्त ने आशीर्वाद देते हुए पूछा—यहां तुम्हें जिस बात का कष्ट हो, मेट्रन साहब से कहना। मुझ पर इनकी बड़ी कृपा है। मुन्ना अब शाम को रोज बाहर खेला करेगा और किसी बात की तकलीफ तो नहीं हैं?

सुखदा ने देखा, समरकान्त दुबले हो गए हैं। स्नेह से उसका हृदय जैसे झलक उठा। बोली—मैं तो यहां बड़े आराम से हूँ, पर आप क्यों इतने दुबले हो गए है?

"यह न पूछो. यह पूछो कि आप जीते कैसे हैं? नैना भी चली गई, अब घर भूतों का डेरा हो गया हैं। सुनता हूं लाला मनीराम अपने पिता से अलग होकर दूसरा विवाह करने जा रहे हैं। तुम्हारी माताजी तीर्थ-यात्रा करने चली गई। शहर में आंदोलन चलाया जा रहा हैं। उस जमीन पर दिन-भर जनता की भीड़ लगी रहती हैं। कुछ लोग रात को वहां साेते हैं। एक दिन तो रातो-रात वहां सैकड़ों झोंपड़े खड़े हो गए, लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उन्हें जला दिया और कई चौधरियों को पकड़ लिया।"

सुखदा मन-ही-मन हर्षित होकर पूछा—यह लोगों ने क्या नादानी की! वहा अब कोठियां बनने लगी हाेंगी?

समरकान्त बोले—हां ईट, चुना, सुर्खी ता जमा की गई थी लेकिन एक दिन राता यहा सारा सामान उड़ गया। ईंटें बिखेर दी गई, चूना मिट्टी में मिला दिया गया। तब से वहा किराये को मजूर ही नहीं मिलते। न कोई बेलदार जाता है, न कारीगर। रात को पुलिस का पहरा रहता हैं। वही बुढ़िया पठानिन आजकल वहां सब कुछ कर धर रही हैं। ऐसा संगठन कर लिया? कि आश्चर्य होता हैं।

जिस काम में वह असफल हुई, उसे वह खप्पट बुढ़िया सुचारू रूप से चला रही है इस विचार में उसके आत्माभिमान को चोट लगी। बाेली—वह बुढ़िया तो चल-फिर भी न पाती थी।

"हां, वही बुढ़िया अच्छे-अच्छाे के दांत खट्टे कर रही हैं। जनता को तो उसने एस मुट्ठी में कर लिया हैं कि क्या कहूं? भीतर बैठे हुए कल घुमाने वाल शान्ति बाबू हैं।"

सुखदा ने आज तक उनसे या किसी से, अमरकान्त के विषय में कुछ न पूछा था, पर इस वक्त वह मन को न रोक सकी—हरिद्वार से कोई यहा आया था?

लाला समरकान्त की मुद्रा कठोर हो गई। वाले—हाँ, आया था। उसी शोहदे सलीम का खत था। वही उस इलाके का हाकिम हैं। उसने भी पकड़-धकड़ शुरू कर दी हैं। उसने खुद लालाजी को गिरफ्तार किया। यह आपके मित्रों का हाल हैं। अब आंखें खुली होंगी। मेरा क्या बिगड़ा? अब ठोकरें खा रहे हैं। अब जेल में चक्की पीस रहे होंगे। गए थे गरीबों की सेवा