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दिन हलधर औ गोबिंद गोपियो समेत चाँदनी रात को आनंद से बन में गाय रहे थे कि इस बीच कुबेर की सेवक शंखचूड़ नाम यक्ष, जिसके सीस मैं मनि औ जो अति बलवान था, सो आ निकला। देखे तो एक ओर सब गोपियाँ कुतूहल कर रही है, औ एक ओर कृष्ण बलदेव मगन हो मत्तवत गाय रहे हैं। कुछ इसके जी में जो आई तो सब ब्रज युवतियों को घेर आगे धर ले चला, तिस समै भय खाय पुकारीं ब्रजबाम, रक्षा करो कृष्ण बलराम।

इतना बचन गोपियों के मुख से निकलतेही सुनकर दोनों भाई रूख उखाड़ हाथ में ले यो दौड़ आए कि मानौ गज माते सिह पर उठ धाए। औ वहाँ जाय गोपियों से कहा कि तुम किसी से मत डरो हम आन पहुँचे। इनको काल समान देखतेही यक्ष भर्थमान हो गोपियों को छोड़ अपनी प्रान ले भागा। उस काल नंदलाल ने बलदेवजी को तो गोपियो के पास छोड़ा औ आप जाय उसके झोटे पकड़ पछाड़ा, निदान तिरछा हाथ कर उसका सिर काट मनि ले नि बलरामजी को दिया।

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