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थे सब चतुर्भुज हो गये। और एक एक के आगे ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र, हाथ जोड़े खड़े हैं।
देख बिरंच चित्र कौ भयौ। भूल्यौ ज्ञान ध्यान सब गयौ॥
जनो पृषान देबी चौमुखी। भई भक्ति पूजा बिन दुखी॥
औ डरकर नैन मूँद लगा थरथर काँपने, जब अंतरजामी श्रीकृष्णचंद ने जाना कि ब्रह्मा अति व्याकुल है तब सबका अंस हर लिया, और आप अकेलेई रह गये, ऐसे कि जैसे भिन्न भिन्न बादल एक हो जाँय।
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