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प्रेमाश्रम

भाव से देखते थे, पर कुछ उत्तर न देते थे। सहसा उन्हें कोई बात याद आ गयी। जेल की और चले। जनता का दल भी उनके साथ-साथ चला। सबको आशा थी कि शायद अभियुक्तो को देखने का, उनकी बाते सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो जाय। अभी यह लोग कचहरी के आहाते से निकले ही थे कि डाक्टर इर्फान अली अपनी मोटर पर दिखायी दिये। आज ही गोरखपुर से लौटे थे। हवा खाने जा रहे थे। प्रेमशंकर को देखते ही मोटर रोक ली और पूछा, कहिए, आज तजवीज सुना दी गयी?

प्रेमशंकर ने रुखाई सेउत्तर दिया, जी हाँ।

इतने में सैकड़ो आदमियों ने चारों ओर से मोटर को घेर लिया और एक तगड़े आदमी ने सामने आ कर कहा- इन्हीं की गरदन पर इन बेगुनाहो का खून है।

सैकड़ो स्वरो से निकला–मोटर से खीच लो, जरा इसकी खिदमत कर दी जाय। इसने जितने रुपये लिये है सच इसके पेट से निकाल लो।

उसी वृहद्काय पुरुष ने इर्फान अली का पहुँचा पकड़ कर इतने जोर से झटक दिया कि वह बेचारे गाड़ी से बाहर निकल पड़े। जब तक मोटर मे थे क्रोध से चेहरा लाल हो रहा था। बाहर आ कर धक्के खायें तो प्राण सूख गये। दया प्रार्थी नेत्रों से प्रेमशंकर को देखा। वह हैरान थे कि क्या करूँ? उन्हें पहले कभी ऐसी समस्या नहीं हल करनी पड़ी थी और न उस श्रद्धा का ही कुछ ज्ञान था जो लोगों की उनमें थी। हाँ, वह सेवाभाव जो दीन जनो की रक्षा के लिए उद्यत रहता था, सजग हो गया। उन्होंने इर्फानअली का दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा और क्रोधोन्मत्त हो कर बोले, यह क्या करते हों, हाथ छोड़ दो।।

एक बलवान युवक बोली, इनकी गर्दन पर गाँव भर का खून सवार हैं।

प्रेमशंकर-खुन इनकी गर्दन पर नहीं, इनके पेशे की गर्दन पर सवार है।

युवक-इनसे कहिए इस पेशे को छोड़ दें।

कई कठो से आवाज आयी, बिना कुछ जलपान किये इनकी अकल ठिकाने न आयगी।

सैकड़ों आवाजे आयी हाँ, हाँ, लग, बेभाव की पड़े!

प्रेमशंकर ने गरज कर कहा---खबरदार, जो एक हाथ भी उठा, नहीं तो तुम्हे यहाँ मेरी लाश दिखाई पड़ेगी। जब तक मुझमे खड़े होने की शक्ति है, तुम इनका बाल भी बांका नही कर सकते।

इस वीरोचित ललकार ने तत्क्षण असर किया। लोग डाक्टर साहब के पास से हट गये। हाँ उनकी सेवा-सत्कार के ऐसे सुदर अवसर के हाथ से निकल जाने पर आपस मे कानाफूसी करते रहे। डाक्टर साहब ने ज्यों ही मैदान साफ पाया, कृतज्ञनेओं से प्रेमशंकर को देखा और मोटर पर बैठ कर हवा हो गये। हजारों आदमियों ने तालियाँ बजायी---भाग! भागा।।

प्रेमशंकर बड़े संकट में पड़े हुए थे। प्रतिक्षण शंका होती थीं कि ये लोग न जाने क्या अधम मचाये। किसी बग्घी या फिटन को आते देख कर उनका दिल धड़कने