पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/८०

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संगीत।
 

यह चित्र अनिर्वचनीय सुन्दर है। किन्तु सौन्दर्यके अतिरिक्त इसमें एक अद्भुत गुण है। यह टोड़ी रागिणीकी यथार्थ प्रतिमा है। टोड़ी रागिणी सुननेसे मनमें जिस भावका उदय होता है, ठीक वही भाव इस प्रतिमाको देख कर भी उत्पन्न होगा।

इसी प्रकार अन्यान्य राग-रागिणियोंके ध्यान हैं। मुल्तानी रागिणी दीपक रागकी स्त्री है। यह गोरी सुन्दरी लाल कपड़े पहने दीपक रागके पास अवस्थित है। भैरवी रागिणी श्वेतवस्त्र पहने और अनेक अलंकारोंसे आभूषित है। इत्यादि।

इसमें सन्देह नहीं कि इन ध्यानोंके सम्बन्धमें मतभेद हैं। जब वैज्ञानिक विषयोंमें ही पण्डितोंमें मतभेद पाया जाता है, तब कल्पनाके विषयों- में अनेक मुनियोंके अनेक मत होना कुछ विचित्र नहीं है। केवल आँख मूंदकर, सोचकर मनसे अलंकारकी सृष्टि करनेपर अलंकारके सम्बन्धमें मतभेद होना आश्चर्य ही क्या है ? किन्तु यह सबको स्वीकार करना होगा कि कुछ शब्दोंके द्वारा कुछ भावोंका उदय होता है। तर्क करनेवाले लोग कह सकते हैं कि कोमल स्वरसे यदि शोक भी सूचित होता है, प्रेम भी सूचित होता है, उन्माद भी सूचित होता है, तो स्वरभेदके द्वारा एक ही भावकी उपलब्धि किस प्रकार हो सकती है ? इसके उत्तरमें यही कहना है कि वह उपलब्धि केवल संस्कारके आधीन है। हमारी संगीत-विद्यामें स्वर कई हैं और भेद भी असीम हैं। किन्तु केवल शिक्षा और अभ्याससे ही उनके तारतम्यकी उपलब्धि होती है। साधारण अभ्यासके कारण ही लड़के शहनाई सुनकर खुशीसे नाचने लगते हैं, हाइलेंडर बगपाइपमें शरीर फुलाते हैं (?)। यह अभ्यास बद्धमूल और सुशिक्षामें परिणत होनेसे भाव-सञ्चयकी अधिकता उत्पन्न होती है—सूक्ष्मातिसूक्ष्मरूपसे अनुभव किया जा सकता है। शिक्षाहीन मूढलोग जिसमें हँसते हैं, भावुक उसीमें भावातिरेकसे रोने लगते हैं। अतएव लोगोंका यह साधारण संस्कार कि संगीत-सुखका अनुभव मनुष्यके लिए स्वभाव-सिद्ध है, भ्रमपूर्ण है। एक सीमातक यह सत्य है कि अच्छी आवाज सबको अच्छी लगती है—स्वाभाविक तालका बोध सबको होता है, किन्तु उच्च

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