पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
नवीन लेखकोंके लिए कुछ उपदेश ।
 

देशके वर्तमान साधारण पाठकोंकी रुचि और शिक्षापर ध्यान देकर लोक- रञ्जनकी ओर झुकनेसे रचनाके विकृत अनिष्टका कारण हो उठनेकी सम्पूर्ण संभावना है।

(३) अगर तुम अपने मनमें यह समझो कि लिखकर देश या मनुष्य- जातिकी कुछ भलाई कर सकोगे, अथवा किसी सौन्दर्यकी सृष्टि कर सकोगे तो अवश्य लिखो। जो लोग अन्य उद्देश्यसे लिखते हैं वे लेखककी उच्च पदवीको नहीं पा सकते।

(४) जो असत्य और धर्मविरुद्ध है, जिसका उद्देश्य पराई निन्दा, दूसरेको पीड़ा पहुंचाना या स्वार्थसाधन है, वह लेख कभी हितकर नहीं हो सकता। इस कारण ऐसा लिखना सर्वथा त्याज्य है। सत्य और धर्म ही साहित्यका लक्ष्य है। और किसी उद्देश्यसे कलम उठाना महापाप है।

(५) जो लिखो उसे वैसे ही प्रकाशित न कर दो। कुछ दिनों तक उसे डाल रक्खो। कुछ दिनों बाद उसका संशोधन करो । तब तुम्हें देख पड़ेगा कि तुम्हारे लेखमें अनेक दोष हैं। काव्य, नाटक, उपन्यास आदिको लिख कर दो एक वर्ष डाल रखकर फिर संशोधन करनेसे वे विशेष उत्कर्षको प्राप्त करते हैं। किन्तु जो लोग सामयिक साहित्यकी सेवा करते हैं उनके लिए यह नियम नहीं है। इसी कारण लेखकके लिए सामयिक साहित्य अवनतिका कारण हुआ करता है।

(६) जिस विषयमें जिसकी गति नहीं है, उस विषयमें उसे हाथ न डालना चाहिए। यह एक सीधी बात है। पर सामयिक साहित्यमें इस नियमकी रक्षा नहीं होती।

(७) अपनी विद्या या विद्वत्ता दिखानेकी चेष्टा मत करो। अगर विद्या होती है तो वह लेखमें आप ही प्रकट हो जाती है, चेष्टा नहीं करनी पड़ती। विद्या प्रकट करनेकी चेष्टासे पाठक खीझ उठते हैं और उससे रचना-सौन्दर्यको भी विशेष हानि पहुँचती हैं। आज कलके लेखोंमें अँगरेजी, संस्कृत, फ्रेंच और जर्मन भाषाओंके उद्धरण ( कोटेशन ) बहुत अधिक देख पड़ते हैं। जो भाषा तुम्हें मालूम नहीं, उस भाषाके किसी वाक्य या अंशको औरोंके ग्रन्थकी सहायतासे कभी मत उद्धृत करो।

६९