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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२२७

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बगुला के पंख
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लौंडे हंस-हंसकर अपनी चुनाव-सम्बन्धी तिकड़म की प्रशंसा कर रहे थे। विद्या-सागर अपने काम में व्यस्त था। जुगनू को इस वक्त यह भीड़भाड़ और शोर अच्छा नहीं लग रहा था । वह एकान्त चाहता था, शांति चाहता था । वह चुप-चाप अपने सोने के कमरे में चला गया। विद्यासागर से उसने कह दिया कि वह उसे सोने दे, और शोर जहां तक सम्भव हो कम करे। उसने नवाब को तुरन्त वुलाने को आदमी भेज दिया था । और अब वह भीतर कमरे का दरवाजा बन्द करके पलंग पर पड़ा बड़ी ही वेचैनी से उसासें ले रहा था।

नवाब ने आकर उसका कुशल-मंगल पूछा, और दोनों दोस्तों में दिल खोलकर बातें होने लगीं। बहुत दिन बाद दोनों दोस्त तखलिए में मिले थे।

नवाब ने कहा, 'बहुत परेशान हो रहे हो, क्या बात है ?'

'बात क्या है, जिस बात का डर था, वही हुई। बड़ी फजीहत हुई।'

नवाब ज़रा हंस दिया। हाथ की सिगरेट सुलगाकर उसने कहा, 'हुआ क्या?'

'हामी ने रंगे हाथों आ पकड़ा। वह मेरे ही कमरे में थी। हमें उम्मीद भी न थी कि वह इस वक्त आ धमकेगा।'

'बड़ी हिमाकत का काम किया उसने, इस तरह गंवारों की तरह आ धमका ! उसे पहले अपने आने की इत्तला देकर इजाजत लेनी चाहिए थी।' नवाब यह कहकर हंसने लगा।

'तुम्हें तो देखता हूं फब्तियां कसने और हंसने से ही फुर्सत नहीं है।'

'दोस्त, मैं चाहता हूं कि तुम भी हंसो। हंसने से तुम्हारी सेहत को फायदा होगा।'

'लेकिन तुम मेरी बेचैनी को क्या जानो !'

'तो एक गिलास शर्बत अनार पियो मियां, बेचैनी खट से दूर हो जाएगी।'

'अब तुम जा सकते हो नवाब, मैं ज़रा सोऊंगा।'

नवाब खिलखिलाकर हंस पड़ा। उसने कहा, 'क्या खूब, हमीसे बिगड़ने लगे । तो फिर हमें बुलाया क्यों था ?'

'फब्तियां कसने और जी जलाने को बुलाया था।'

'खैर, अब काम की बात कहो, क्या चाहते हो ?'

'यह बताओ, वह चली आई, और उसके पीछे मुहल्लेवालों की एक