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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९२

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१० वगुला के पंख संकटों से लबालब बना लेते । दोस्त, तुम एक हौसलेवाले आदमी हो, कहो हां ! 'हां ।' 'तो बस, उन टेढ़े-नुकीले और चट्टानों से भरे हुए खतरनाक रास्तों पर चलने को अपने को तैयार कर लो। और अज्ञात चीज़ों को हासिल करने का कस्द कर लो। उस्ताद की सीख मानो। ज़िन्दगी का दरिया, आखिर समन्दर की छाती में तूफान लाएगा।' 'लेकिन एक दिक्कत यह है कि मैं अभी इतना खर्चा नहीं बर्दाश्त कर सकता कि नया घरबार बसाऊं।' 'नवाब कोरी राय नहीं देता, सब मुश्किलें आसान करना अपना फर्ज़ समझता है । यह लो।' उसने जेब से निकालकर नोटों का एक बंडल जुगनू के हाथों में थमा दिया । जुगनू ने कहा, 'यह क्या ?' "सिर्फ पांच सौ हैं और जिस कदर ज़रूरत हो दूंगा, जब तक कि तुम्हारा हाथ खुल न जाए।' 'लेकिन मैं तुम्हें यह तकलीफ नहीं देना चाहता।' 'तकलीफ क्या है ? मैं तो बीज बो रहा हूं।' 'बीज कैसा?' 'जैसे खेत में किसान बोते हैं।' 'इसका मतलब ?' 'जब खेत हरा-भरा होकर लहराने लगे, तब मतलब पूछना।' 'अच्छी बात है । जब अोखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर !' जुगनू ने उठते हुए कहा । नवाब भी उठा । उसने कहा, 'एक बात याद रखना दोस्त ! कुछ लोग ऐसे होते हैं जो समाज-रचना के सहारे जिन्दा रहते हैं, उसका एक अंग बनकर । उनकी हालत वैसी ही होती है जैसी हमारे जिस्म में हाथ- पैर और दूसरी इन्द्रियां हैं। वे जब तक तन्दुरुस्त हैं और जिस्म में गुंथी हुई हैं, तभी तक ज़रूरी हैं।' 'इसका मतलब ?' 'मतलब धीरे-धीरे समझना । अब चलो।' नवाब ने सिगरेट सुलगाई और दोनों दोस्त घर लौटे।