सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रूठी रानी १३१ धौसे बजने लगे। रावलजी अगवानी लेकर आगे बढे,राव मालदेव मौर बाध, सेहरा लगा घोडे की पूजा कर सवार हुए । अगल-बगल जीता और कूपा सूरमा थे, कमर मे दुहरी तलवार थी। आगे जाजम बिछी थी, गद्दी-तकिए लगे थे। रावलजी ने आगे बढकर स्वागत किया, दोनों गले लगकर मिले, अब निशान का हाथी आगे बढा। दोनो साथ-साथ किले में पहुचे । रावजी ने तोरण बाधा, दोनो राजा मसनद पर बैठ गए। भीतर आगन मे ब्याह की तैयारियां हो रही थी। नाजर रावजी को बुलाने आया, रावल भी साथ उठे । जीता और कूपा ने दोनो ओर से हाथ पकड़कर उन्हें बैठाते हुए कहा, "हमे छोड़कर कहा चले रावलजी, जब तक रावजी लौट न आए यही विराजिए।" रावलजी जान जोखिम मे देख बौखलाए-से बैठे रहे। महल मे ब्याह हो रहा था, ब्राह्मण वेद-मन्त्र पढ रहे थे। हथलेवा और गठजोडा हो रहा था, फेरे फिर गए, ब्याह हो गया, मालदेव और उमादे पति-पत्नी हो गए। उमादे अपने महल को चली गई। सहेलियां रावजी को उमादे के महलो मे ले चली। महल मे एक जगह भरेली आदि कुछ सुन्दरिया गा रही थी; रावजी चलते- चलते ठिठक गए । खवासे दौडी, एक ने चादनी, दूसरी ने सोजनी, तीसरी ने मस- नद लगाई, चौथी ने तकिए लगा दिए, दो-दो खवासे मोरछल ले दाये-बायें खडी हो गईं, पाच-सात ने शामियाना खड़ा कर दिया, दो चंवर और पखा झलने लगी। चैत की सुहावनी रात थी, चादनी फैली हुई थी, ठण्डी हवा के झोके चलने लगे, भीनी-भीनी फूलो की सुगन्ध वायु-मण्डल मे फैल गई। भारेली ने आगे बढ़कर मुजरा किया और सोजनी से कुछ हटकर बैठ गई। उसने गानेवालियो से संकेत किया। दारूड़ा दाखारो .. तबला खड़का और सारंगी ने सिसकारी ली। गानेवालियो ने आरम्भ किया : भरला, ए सुघड़ कलाल दारूड़ा दाखांरो.. जीवन वारा लाखांरो एक खवास ने पन्ने के हरे प्याले में लाल अंगूरी शराब भरकर रावजी के आगे बढाई । उन्होने हंसकर पी और प्याला मुहरो से भरकर लौटा दिया। खवास ने उठकर मजरा किया और गले के मोतियों को रावजी पर वार-वारकर गाने-