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पृष्ठ:बिखरे मोती.pdf/१०१

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[दृष्टिकोण
 

या रोती चिल्लाती तो कदाचित् अपनी इस हरक़त पर रमाकान्त जी को इतना पश्चात्ताप न होता, जितना अब हो रहा था। उन्हें बार-बार ऐसा लगता कि जैसे निर्मला ठीक थी और वे भूल पर थे। उनसे ऐसी भूल और कभी न हुई थी। कल न जाने क्यों और कैसे वे निर्मला पर हाथ चला बैठे थे। उनका व्यवहार उन्हीं को सौ-सौ बिच्छुओं के दंशन की तरह पीड़ा पहुँचा रहा था। वे अवसर ढूँढ रहे थे कि कहीं निर्मला उन्हें एकान्त में मिल जाय तो वे पश्चात्ताप के आँसुओ से उसके पैर धो दें, और उससे क्षमा मांग लें। किन्तु निर्मला भी सतर्क थी; वह ऐसा मौका ही न आने देती थी। वह बहुत बच-बच कर घर का काम कर रही थी। उसके चेहरे पर कोई विशेष परिवर्तन न था, न तो यही प्रकट होता था कि खुश है और न ही कि नाराज है। हाँ! उसमें एक ही परिवर्तन था कि अब उसके व्यवहार में हुकूमत की झलक न थी। वह अपने को उन्हीं दो-तीन नौकरों में से एक समझती थी, जो घर में काम करने के लिए होते हैं, किन्तु उनका कोई अधिकार नहीं होता।

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