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पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/२८

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बोले––"भय्या, अब तो गाँव में रहने का इरादा है––बंगाल का पानी बड़ा लागन है।"

त्रिलोचन के तीसरे नेत्र में और चमक आ गई। एक क़दम बढ़ कर और निकट होते हुए, सामीप्यवाले भक्त के सहानुभूतिसूचक स्वर से बोले––"बड़ा अच्छा है, बड़ा अच्छा है। काम कौन-सा करोगे?"

"अभी तक कुछ विचार नहीं किया।" बिल्लेसुर वैस ही मुस्कराते हुए बोले।

"बिना सोते के कुत्रा सूख जाता है। बैठे-बैठे कितने दिन खाओगे?"

"सही-सही कहता हूँ। अभी तो ऐसे ही दिन कटते हैं।"

"ऐसा न कहना। गाँव के लोग बड़े पाजी है। पुलिस में रपोट कर देंगे तो बदमाशी में नाम लिख जायगा। कहा करो, जब चुक जायगा तब फिर कमा लायेंगे।"

बिल्लेसुर सिटपिटाये। कहा, "हाँ भय्या, आजकल होम करते हाथ जलता है। लोग समझेंगे, जब कुछ है ही नहीं तब खाता क्या है ?––चोरी करता होगा।"

त्रिलोचन ने सोचा, परले दरजे का चालाक है, कहीं कुछ खोलता ही नहीं। खुलकर बोले, "हाँ, दीनानाथ इसी तरह बहुत खीस निपोड़कर बातचीत किया करते थे, अब लिख गये बदमाशी में; रात को निगरानी हुआ करती है।"

बिल्लेसुर फिर भी पकड़ में न आये। कहा, 'पुलिसवाले आँखें देखकर पहचान लेते हैं––कौन भला आदमी है, कौन बुरा। अपने खेत मैं रामदीन को बंटाई में देकर गया था। वही खेत लेकर किसानी करूँगा।"